
उज्जैन (नईदुनिया प्रतिनिधि)। भाद्र शुक्ल पक्ष की षष्ठी यानी गणेश स्थापना के दो दिन बाद 21 सितंबर को मराठी भाषी परिवारों में महालक्ष्मी विराजेंगी। ढाई दिन महालक्ष्मी घरों में विराजमान होने के पश्चात अंतिम दिन यानी 23 सितंबर को विसर्जन होगा। मराठी भाषी सुशील पाचपोर ने बताया कि प्रथम दिन महालक्ष्मी का आह्वान कर बुलाया जाता है। ढोल ढमाके साथ जब महालक्ष्मी घर आती है तो पूरा घर महालक्ष्मी को दिखाया जाता है, पश्चात एक स्थान पर आसन दिया जाता है। आसन पर पूजा पाठ कर विराजित किया जाता है। महालक्ष्मी के दूसरे दिन महाप्रसादी का आयोजन रहता है। तीसरे दिन ढाई दिन होने पर दोपहर को विसर्जन होता है।
ऐसी मान्यता है कि जिन घरों में महालक्ष्मी को विराजना होता है, उस घर के लोगों को वे स्वयं ही संकेत देती हैं। पाचपोर ने बताया कि वर्ष 2016 तक उनके घर महालक्ष्मी नहीं बैठती थी और न ही उन्हें पता था कि पूर्वजों के समय कभी बैठी हो। वर्ष 2017 में महालक्ष्मी ने पुत्र के माध्यम से स्वयं बैठने के संकेत दिए। उसके बाद घर में महालक्ष्मी विराजित होना शुरू हो गई। महालक्ष्मी का मराठी भाषी परिवार में विशेष महत्व रहता है। कई लोगों की मनोकामनाएं भी महालक्ष्मी पूरी करती हैं।