शत्रुघन केशरवानी, सागर, नवदुनिया प्रतिनिधि। जिले में आदि शक्ति मां जगदंबा अनेक रूपों में विराजमान हैं। हर स्थान का अपना-अपना प्रभाव व प्रमाण है। मां दुर्गा के इन मंदिरों में यूं तो साल भर भक्त माता के दर्शनों को आते है परंतु साल की दोनों नवरात्र में इन सिद्ध पीठों पर भक्तों का तांता लगा रहता है। प्रमुख रूप से रहली के पास मां हरसिद्धि देवी रानगिर, मां सिंहवाहिनी टिकीटोरिया, शहर के बाघराज, मां बीजासेन व महलवार देवी आदि मंदिर प्रमुख हैं।
दिन में तीन रूप बदलती हैं रानगिर की मां हरसिद्धि-
सागर से करीब 60 किलोमीटर दूर नरसिंहपुर मार्ग पर स्थित प्रसिद्ध तीर्थ क्षेत्र रानगिर अपने आप में एक विशेषता समेटे हुए है। देहार नदी के तट पर स्थित इस प्राचीन मंदिर में विराजी मां हरसिद्धि देवी की मूर्ति दिन में तीन रुपों में दर्शन देती हैं।
प्रात: काल मे कन्या, दोपहर में युवा और सायंकाल प्रौढ़ रुप में माता के दर्शन होते है। जो सूर्य, चंद्र और अग्नि इन तीन शक्तियों के प्रकाशमय, तेजोमय तथा अमृतमय करने का संकेत है। किवदंती के अनुसार देवी भगवती के 52 सिद्ध शक्ति पीठों में से एक शक्तिपीठ है सिद्ध क्षेत्र रानगिर। यहां पर सती की रान गिरी थी। इस कारण यह क्षेत्र रानगिर कहलाया।
बाघराज मंदिर में शेर का रहता था डेरा-
सागर शहर के मध्य से तीन किमी दक्षिण दिशा में एक छोटी पहाड़ी पर मां हरसिद्धि देवी बाघराज मंदिर है। इस क्षेत्र का नाम बाघराज क्यों पड़ा, इसकी भी कई रौचक दंत कथाएं यहां के रहवासी अपने पूर्वजों से सुनते आ रहे है। जनश्रुतियों के अनुसार 1600 ई. के आसपास इस घने जंगल से निकलने वाले एक मजदूर को देवी स्वरुप एक कन्या पहाड़ी के नीचे मिली।
मजदूर इस बात से हैरान हुआ कि इस घने जंगल में लोग आने से डरते है, यह लड़की यहां क्या कर रही है। इसी बीच लड़की के कहने पर मजदूर उसे कंधे पर उठाकर पहाड़ी पर ले गया। मजदूर ने जैसे ही उस लड़की को कंधे से नीचे उतारा वह मूर्ति में परिवर्तित हो गई। इसके अलावा यहां ऐसी कहावत है कि मंदिर में बनी एक गुफा में शेर रहता था जो माता के लिए नमन करने मंदिर आता था।
आकाश मार्ग से स्वयं प्रकट हुई थी मां बीजासेन-
नगर के तिलकगंज वार्ड, लच्छू चौराहा के पास स्थित बीजासेन माता मंदिर में नवरात्रि की पंचमी पर भक्तों का मेला भरता है। मान्यता है कि यहां संगमरमर की एक गोल शिला के रूप में मां बीजासेन देवी अवतरित हुई। सिद्ध श्री पठाधाम के नाम से प्रसिद्ध स्वयं प्रकट मां बीजासेन देवी मंदिर के पुजारी श्री मणिप्रसाद विश्वकर्मा ने बतया कि वर्ष 1985 में क्वार नवरात्रि की पंचमी को एक अद्भुत घटना हुई। इस दिन रात्रि करीब 8 बजे आकाशमार्ग से संगमरमर की एक शिला पठा धाम की कन्या चंद्रप्रभा की गोदी में अवतरित हुई।
टिकीटोरिया की पहाड़ी पर विराजी मां सिंहवाहिनी-
रहली से जबलपुर मार्ग पर पहाड़ी पर विराजीं मां सिंहवाहिनी का धाम टिकीटोरिया के रूप में विख्यात है। दूर से यह दैवीय स्थल मैहर माता जैसा प्रतीत होता है। यहां पहाड़ काटकर मिट्टी की सीढ़ियां बनायी गयी थीं फिर पत्थर रख दिये गये और सन 1984 में जीर्णोद्धार समिति का गठन किया गया।
वर्तमान में जनसहयोग से मंदिर में ऊपर तक जाने के लिए 365 सीढ़ियां हैं। भारत के कोने कोने के लोगों के दान से यहां संगमरमर की सीढ़ियों के निर्माण में दान दिया हैं। इसके अलावा यहां विभिन्ना धार्मिक आयोजन, शादी-विवाह आदि के लिए लगभग 15 धर्मशालाएं भी हैं, जो विभिन्न् समाज समितियों द्वारा बनवायी गई है।