Mool Nakshatra: मूल नक्षत्र में यदि बच्चे का जन्म हुआ है तो इसको लेकर ज्यादा घबराने की जरूरत नहीं है। बच्चे के स्वास्थ्य और स्वभाव पर इसका प्रभाव जरूर पड़ता है, लेकिन यदि बच्चे के ग्रहयोग उत्तम है तों मूल नक्षत्र का अशुभ प्रभाव असरकारक नहीं होता है।
मूल नक्षत्र में इन बातों का रखें ख्याल
मूल नक्षत्र में जन्में बच्चे के स्वास्थ्य को लेकर खास सतर्क रहना चाहिए। इसके साथ ही बच्चे के माता-पिता की कुंडली का अवलोकन करना चाहिए और यह देखना चाहिए उनके ऊपर बच्चे के जन्म का क्या प्रभाव पड़ा है। मूल नक्षत्र में जन्म लेने वाले बच्चे का यदि बृहस्पति या चंद्रमा मजबूत है तो उसके स्वास्थ्य पर कोई संकट नहीं रहता है। पिता और परिजनों के गृह मजबूत है तो भी चिंता की कोई बात नहीं होती है। सामान्यत: आठ वर्ष के बाद मूल नक्षत्र का अशुभ प्रभाव स्वत: समाप्त हो जाता है।
सत्ताइस दिन बाद करवाएं मूल शांति
मूल नक्षत्र के अशुभ प्रभाव को कम करने के लिए बच्चे के जन्म के सत्ताईस दिन बाद मूल नक्षत्र की शांति करवाना चाहिए। इसके साथ ही जब तक बच्चे की उम्र आठ साल न हो जाए उसके माता-पिता को ओम नम: शिवाय का जाप करना चाहिए। मूल नक्षत्र के कारण बच्चे के स्वास्थ्य पर संकट हो तो बच्चे की माता को पूर्णिमा का उपवास रखना चाहिए।
स्वभाव पर हो असर तो करें यह उपाय
यदि बच्चे की राशि मेष और नक्षत्र अश्विनी है तो बच्चे के लिए माता- पिता को और बड़ा होने पर बच्चे को स्वयं हनुमानजी की उपासना करना चाहिए। यदि राशि सिंह और नक्षत्र मघा है तो बच्चे को सूर्य को जल अर्पित करना चाहिए। यदि राशि धनु और नक्षत्र मूल है तो गुरु और गायत्री की आराधना करना चाहिए। कर्क और नक्षत्र आश्लेषा होने पर शिव जी की उपासना करना चाहिए। वृश्चिक राशि और ज्येष्ठा नक्षत्र होने पर हनुमान जी की आराधना करना चाहिए। मीन राशि और रेवती नक्षत्र होने पर श्रीगणेश की उपासना करना चाहिए।