मल्टीमीडिया डेस्क। नवरात्रि के नौ दिनों में देवी के नौ रूपों की आराधना की जाती है और इन नौ दिनों में की गई आराधना वर्षों तक की गई उपासना के बराबर फल देती है। इसलिए शास्त्रों में नवरात्रि के दौरान की गई आराधना का विशेष महत्व बताया गया है। नवरात्र के नौ दिनों में मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की उपासना की जाती है। इसी क्रम में चौथे दिन देवी कूष्माणडा की पूजा की जाती है।
चौथा दिन होता है मां दुर्गा के कूष्माण्डा स्वरूप का
नवरात्रि के चौथे दिन मां दुर्गा कूष्माण्डा स्वरूप में अपने भक्तों को आशीर्वाद देती है। इस दिन साधक का मन अनाहत चक्र में रहता है इसलिए इस दिन साधक को पवित्र भाव और अचंचल मन से देवी कूष्माण्डा की पूजा करना चाहिए। देवी कूष्माण्डा का निवास सूर्य के अंदर के लोक में है। सूर्य के अत्यंत तेजस्वी लोक में विराजित रहने की शक्ति केवल देवी कूष्माण्डा के पास में है इसलिए मां का स्वरूप सूर्य के समान दैदिप्यमान है और इनका तेज दसों दिशाओं में व्याप्त है। देवी कूष्माण्डा की आठ भुजाएं है इसलिए माता को अष्टभुजा देवी भी कहा जाता है। इनके सातों हाथों में कमंडल, धनुष, बाण, कमल फूल, अमृत कलश, चक्र और गदा है और आठवे हाथ में देवी के सिद्धियों और निधियों को देने वाली माला है। देवी कूष्माण्डा का वाहन सिंह है।
देवी कूष्माण्डा की कथा
अपने उदर से अंड अर्थात् ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इनको कूष्मांडा देवी के नाम से पुकारा जाता है। दु र्गा सप्तशती के कवच में लिखा गया है
कुत्सित: कूष्मा कूष्मा-त्रिविधतापयुत: संसार:।
स अण्डे मांसपेश्यामुदररूपायां यस्या: सा कूष्मांडा।।
अर्थात वह देवी जिनके उदर में त्रिविध ताप यानी दैहिक, भौतिक तथा दैविक ताप युक्त संसार स्थित है वह कूष्माण्डा हैं।
देवी कूष्माण्डा इस संपूर्ण जगत की अधिष्ठात्री देवी हैं। जब सृष्टि का निर्माण नहीं हुआ था। उस समय चारों ओर अंधकार का साम्राज्य था देवी कुष्मांडा जिनका मुखमंडल सैकड़ों सूर्य की आभा से चमकता है ऐसे समय में वह प्रकट हुई उनके मुख पर फैली मुस्कुराहट के कारण सृष्टि का जन्म शुरू हो गया इसलिए यह देवी कूष्माण्डा के रूप में जगतविख्यात हुई।
मान्यता है हैं कि जब चारों ओर अंधेरा फैला हुआ था, ब्रह्माण्ड का अस्तित्व नहीं था, तब देवी कूष्माण्डा ने मंद-मंद मुस्कुराते हुए सृष्टि की रचना की थी। ब्रह्माण्ड की रचना करने के बाद देवी ने त्रिदेवों ब्रह्मा, विष्णु और महेश और त्रिदेवियों काली, लक्ष्मी और सरस्वती को उत्पन्न किया था। देवी का यह रूप इस पूरे ब्रह्माण्ड का निर्माण करने वाला है।