धर्म डेस्क, इंदौर (Nirjala Ekadashi 2025)। ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला व भीमसेन एकादशी (Bhimseni Ekadashi) के रूप में माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि यह वर्ष की सर्वोत्तम एकादशी है। वर्षभर तक एकादशी का व्रत नहीं करने वाले अगर निर्जला एकादशी का व्रत पूर्ण विधि-विधान (Nirjala Ekadashi Puja Vidhi) और नियम संयम के साथ करते हैं तो वर्षभर की 24 एकादशी का फल प्राप्त होता है।
देश के प्रमुख मंदिरों में निर्जला एकादशी के व्रतधारियों के लिए विशेष इंतजाम किये गये हैं। मंदिरों में कूलर लगाए गए हैं। भजन कीर्तन के लिए मंडलियों को आमंत्रित किया गया है।
मध्य प्रदेश में ग्वालियर के ज्योतिषाचार्य पं रवि शर्मा ने बताया कि एकादशी पर दान-पुण्य का विशेष महत्व है। एकादशी तिथि पांच जून रात दो बजकर 18 मिनट और एकादशी तिथि समापन सात जून सुबह 4 बजकर 50 मिनट तक है।
व्रत का पारण समय सात जून को दोपहर एक बजकर 44 मिनट से चार बजकर 31 मिनट तक है। यह वर्ष की सर्वोत्तम एकादशी मानी जाती है। व्रत ना करने वाले भी यदि केवल यही एक एकादशी रखें, तो सभी एकादशियों का पुण्य प्राप्त होता है। निर्जला व्रत करने से चंचलता नहीं, आपकी स्थिरता जागती है। शरीर नहीं, आपका इच्छाशक्ति सक्रिय होती है।
जब इंद्रियां भी उपवास करती हैं, तब ही पापों का नाश होता है। यह व्रत भीमसेन द्वारा पूछा गया था, क्योंकि वे बलशाली थे और अन्न त्याग नहीं पाते थे। तब महर्षि व्यास ने कहा कि तुम वर्ष में केवल एक दिन — निर्जला व्रत करो। यह सभी व्रतों के बराबर फल देगा।
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निर्जला एकादशी को मौसमी फल आम, बांटी, खरबूजा के साथ जल से भरा मिट्टी का पात्र और हाथ के पंखे का दान करने का विशेष महत्व हैं। इस दिन श्रद्धालु मंदिरों में इन वस्तुओं का दान कर सुख-समृद्धि के साथ मौक्ष की कामना करते हैं।