मल्टीमीडिया डेस्क। अमावस्या का दिन पितृकर्म के लिए जाना जाता है। इस दिन पितृों के लिए किए गए दान-पुण्य का अक्षय फल मिलता है। साल में कुल बारह अमावस्या आती है, जिनको अलग- अलग नामों से जाना जाता है। इसी क्रम में भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को पिठौरी अमावस्या के नाम से जाना जाता है। उत्तर भारत के कई क्षेत्रों में इसको कुशोत्पाटनम के नाम से भी जाना जाता है।
अमावस्या पर होता है पितृकर्म
पिठौरी अमावस्या के अवसर पर पितृों के निमित्त कर्म करने का विशेष महत्व है। इस दिन पितरों के तर्पण और श्राद्ध का अनन्त गुना फल मिलता है। साथ ही पिठौरी अमावस्या पर गंगा स्नान या किसी पवित्र नदी या सरोवर में स्नान और पूजा-पाठ का भी कई गुना फल प्राप्त होता है। इस दिन पितरों के निमित्त कार्य करने से मानव के जीवन में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है। इस दिन स्नान करने के बाद पुरुष लोग सफेद रंग के कपड़े पहनें और पितरों का तर्पण करें। उनके निमित्त चावल, सब्जी और दाल जैसे पके हुए भोजन का दान करें।
पिठौरी अमावस्या पर देवी दूर्गा की पूजा का विशेष महत्व है। महिलाएं इस दिन मां दुर्गा की पूजा कर अपने पुत्र की लंबी आयु और बेहतर सेहत की कामना करती हैं। इस बार पिठौरी अमावस्या का पर्व 30 अगस्त को मनाया जाएगा।
पुत्र की कामना और उसके बेहतर स्वास्थ्य के लिए करें माता पार्वती की पूजा
शास्त्रोक्त मान्यता के अनुसार पिठौरी अमावस्या के अवसर पर महिलाओं को माता पार्वती माता की उपासना करनी चाहिए। इस अवसर पर आटे से 64 देवियों की छोटी-छोटी प्रतिमाओं का निर्माण करें और उनको नए वस्त्र धारण करवाएं। पूजा के स्थान पर सुगंधित, ताजे फूलों से अच्छी तरह से सजावट करें। पौराणिक मान्यता के अनुसार माता पार्वती ने भगवान इंद्र की पत्नी को पिठौरा अमावस्या की कथा सुनाई थी।
सनातन मान्यता के अनुसार, पिठौरी अमावस्या के दिन व्रत करने से व्यक्ति को बुद्धिमान और बलशाली पुत्र की प्राप्ति होती है। माता पार्वती की पूजा में देवी को सुहाग से संबंधित सभी समान चूड़ी, साड़ी, सिंदूर, बिंदी आदि चढ़ाया जाता है। दक्षिण भारत में पिठौरी अमावस्या को पोलाला अमावस्या के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन दक्षिण भारत में देवी पोलेरम्मा की पूजा की जाती है। पोलेरम्मा को पार्वती मां का ही एक रूप माना गया है।