शशांक शेखर बाजपेई, धर्म डेस्क। Shradh Tarpan Vidhi: हिंदू धर्म में देवी-देवताओं के बाद पितरों का विशेष स्थान और महत्व है। पितृ लोक में रहने वाली हमारे पूर्वजों की आत्मा अपनी मुक्ति और परिवार को आशीर्वाद देने के लिए श्राद्ध पक्ष में धरती पर आती हैं। इन 15 दिनों में उनकी आत्मा की शांति के लिए तर्पण दिया जाता है।
इंदौर के ज्योतिषाचार्य पंडित गिरीश व्यास बताते हैं कि पितरों की आत्मा जब तृप्त हो जाती है, तो वह जाते हुए सुख शांति का आशीर्वाद देकर जाती है। वहीं, पितरों के निमित्त कोई कर्म नहीं करने से उनकी आत्मा दुखी होती है और परिवार को परेशानियों, दुर्घटनाओं आदि का सामना करना पड़ता है।
वह बताते हैं कि महाभारत, पद्मपुराण के अलावा अन्य स्मृति ग्रंथों में भी इसके बारे में विस्तार से बताया गया है। पितृपक्ष में पितरों के निमित्त विधि-विधान से जो व्यक्ति श्राद्ध करता है, उसकी इच्छाएं पूरी होती हैं। घर-परिवार में शांति होती है। व्यवसाय और आजीविका बढ़ती है।
पितृपक्ष की शुरुआत भाद्रपद की पूर्णिमा से होती है और यह अश्विन मास की अमावस्या तक चलते हैं। इस दौरान पितरों की आत्मा की शांति और उनकी मुक्ति के लिए श्राद्ध कर्म किया जाता है। इस बार 17 सितंबर 2024 से पितृपक्ष की शुरुआत हो रही है, जो दो अक्टूबर चलेगा। इस बार पितृपक्ष में 16 तिथियां रहेंगी।
17 सितंबर - पूर्णिमा का श्राद्ध
18 सितंबर - प्रतिपदा का श्राद्ध
19 सितंबर - द्वितीय का श्राद्ध
20 सितंबर - तृतीया का श्राद्ध
21 सितंबर - चतुर्थी का श्राद्ध
21 सितंबर - महा भरणी श्राद्ध
22 सितंबर - पंचमी का श्राद्ध
23 सितंबर - षष्ठी का श्राद्ध
23 सितंबर - सप्तमी का श्राद्ध
24 सितंबर - अष्टमी का श्राद्ध
25 सितंबर - नवमी का श्राद्ध
26 सितंबर - दशमी का श्राद्ध
27 सितंबर - एकादशी का श्राद्ध
29 सितंबर - द्वादशी का श्राद्ध
29 सितंबर - माघ श्रद्धा
30 सितंबर - त्रयोदशी श्राद्ध
1 अक्टूबर - चतुर्दशी का श्राद्ध
2 अक्टूबर - सर्वपितृ अमावस्या
नोट- जिन लोगों को अपने पितरों के निधन की तिथि ज्ञात नहीं हो, वो सर्वपितृ अमावस्या के दिन सभी पितरों के निमित्त श्राद्ध कर सकते हैं।
पंडित गिरीश व्यास बताते हैं कि सर्वोत्तम तो यह रहेगा कि पितृपक्ष में गया, गोदावरी, प्रयाग में श्राद्ध-तर्पण करना चाहिए। यदि ऐसा करने की स्थिति नहीं है, तो घर पर ही श्राद्ध और तर्पण करना चाहिए। इसके लिए निम्न तरीके को अपनाना चाहिए।