Sankashti Chaturthi 2020 Puja Muhurat : आज संकष्टी चतुर्थी का पर्व मनाया जा रहा है। संकष्टी चतुर्थी व्रत मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष चतुर्थी तिथि व पुनर्वसु नक्षत्र में रखा जाएगा। संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश का विशेष पूजन किया जाता है। संकष्टी गणेश चतुर्थी पर, भक्त भगवान गणेश की पूजा करने के लिए एक दिन का उपवास रखते हैं। यह दिन हर महीने चतुर्थी तिथि (कृष्ण पक्ष की चतुर्थी) को मनाया जाता है। संकष्टी का अर्थ मुसीबतों से मुक्ति है। इसलिए, भक्त इस दिन भगवान गणेश की पूजा करते हैं और चंद्रमा को देखने के बाद ही अपना उपवास तोड़ते हैं और वे रात में चंद्र देव को अर्घ्य देते हैं। आदिक मास / पुरुषोत्तम मास (हिंदू लीप माह) की संकष्टी को विभुवण संकष्टी गणेश चतुर्थी के रूप में जाना जाता है। इस व्रत की तिथि, समय और महत्व के बारे में जानने के लिए आगे पढ़ें।
चंद्रोदय का समय-
चंद्र उदय का समय मध्य प्रदेश में रात 8:10 बजे का है
उत्तर भारत में इसका समय शाम 7:56 बजे है।
संध्या पूजा- शाम 5:24 बजे से शाम 6:45 बजे तक।
संकष्टी चतुर्थी का महत्व:
यदि संकष्टी पर गणेश जी की पूजा की जाती है, तो घर के नकारात्मक प्रभाव दूर हो जाते हैं। साथ ही घर में शांति बनी रहती है। ऐसा माना जाता है कि इस अवधि के दौरान, घर में आने वाली सभी आपदाओं को गणेश की पूजा करके दूर किया जाता है। इस दिन चंद्र दर्शन भी बहुत शुभ होता है। यह व्रत सूर्योदय से शुरू होता है और चंद्र दर्शन पर समाप्त होता है। बता दें कि संकष्टी चतुर्थी के 13 व्रत पूरे वर्ष में रखे जाते हैं। यह भी कहा जाता है कि यदि भक्त संकष्टी चतुर्थी पर भगवान गणेश की पूजा करते हैं, तो उनके सभी दुख नष्ट हो जाएंगे। प्रत्येक संकष्टी दिवस एक पीठ के साथ जुड़ा हुआ है, और इस दिन गणेश के एक विशिष्ट रूप की पूजा की जाती है। आदिक मास चतुर्थी के दौरान, भक्त विभुवन पालक महा गणपति की प्रार्थना करते हैं और पीठ द्वार बिल्व पत्र पीठ हैं।
यह है इसकी परंपरा
इस दिन व्रत रखने की परंपरा सतयुग में राजा चंद्रसेन के समय से चली आ रही है। पांडव राजा युधिष्ठिर ने भी महर्षि वेद व्यास, एक महान ऋषि और महाभारत के लेखक से इसके महत्व के बारे में जानने के बाद इसका अभ्यास किया था। ऋषि मार्कंडेय ने राजा चंद्रसेन को संकष्टी से जुड़ी कथा भी सुनाई और इस तरह इस दिन उपवास रखने की परंपरा शुरू हुई।
यह है पूजा विधान
संकष्टी चौथ (चतुर्थी) के दिन, सुबह स्नान करने के बाद, महिलाएं भगवान गणेश की पूजा करती हैं, जो रिद्धि-सिद्धि प्रदान करते हैं और पूरे दिन उपवास रखती हैं। इसके बाद शाम को भगवान गणेश की पूजा अर्चना के साथ की जाती है और फूल, तिल, गुड़ आदि चढ़ाए जाते हैं। गणेशजी की पूजा में प्रसाद चढ़ाना न भूलें। गणपति के सामने एक दीपक जलाएं और गणेश के मंत्र का जाप करें। चंद्रमा के उदय के बाद, अर्घ्य देते समय नीचे की ओर देखें।
इस बार संकष्टी चतुर्थी पर सर्वार्थसिद्धि योग
ज्योतिषाचार्य सुनील चोपड़ा ने बताया कि इस बार संकष्टी चतुर्थी पर सर्वार्थसिद्धि योग बन रहा है। जिससे उस दिन इस योग में सभी कार्य सिद्ध होंगे। भगवान गणेश अन्य सभी देवी-देवताओं में सर्वप्रथम पूज्य है। श्रीगणेश को बुद्धि, बल और विवेक का देवता माना जाता है। भगवान गणेश के लिए किया जाने वाला संकष्टी चतुर्थी व्रत काफी प्रचलित है। भगवान गणेश को तिल, गुड़, लड्डू, दूर्वा, चंदन और मीठा अर्पित किया जाता है। गणपति जी के सामने धूप-दीप जलाकर गणेश वंदना की जाती है। रात्रि में चांद निकलने से पहले गणपति पूजा करके संकष्टी व्रत कथा की जाती है। उसके पश्चात रात्रि में चंद्र दर्शन करने के पश्चात व्रत को खोला जाता है। चतुर्थी के दिन चंद्र दर्शन का विशेष महत्व होता है। मान्यता है कि सूर्योदय से शुरू होने वाला संकष्टी चतुर्थी का व्रत चंद्र दर्शन के बाद ही समाप्त होता है।
घर से नकारात्मक शक्तियां होती हैं दूर
संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजन करने से घर से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है। इस दिन लोग अपने कष्टों से मुक्ति पाने के लिए भगवान गणेश की अराधना करते हैं। इस दिन लोग मनचाहे वरदान पाने के लिए भगवान गणेश की पूजा करने के साथ ही व्रत भी रखते हैं। संकष्टी चतुर्थी का अर्थ संकट को हरने वाली चतुर्थी से है। इस दिन चंद्रमा बुध ग्रह की मिथुन राशि में होगा तथा सूर्य मंगल की राशि वृश्चिक में होगा। भगवान गणपति अपने भक्तों के सभी दुख हर लेते हैं, इसलिए उन्हें विघ्नहर्ता भी कहते हैं।