धर्म डेस्क। हिन्दू धर्म में संतान सप्तमी व्रत का विशेष महत्व बताया गया है। यह व्रत श्रावण या भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को रखा जाता है।
मान्यता है कि इस दिन माता-पिता विशेषकर माताएं अपनी संतान की लंबी आयु, उत्तम स्वास्थ्य और उज्ज्वल भविष्य के लिए व्रत करती हैं। पूजा में मुख्य रूप से भगवान विष्णु, माता संतान लक्ष्मी और सप्तमी देवी की आराधना की जाती है।
संतान सप्तमी व्रत क्यों रखा जाता है?
- संतान की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए।
- संतान के उत्तम स्वास्थ्य और विद्या-बुद्धि के लिए।
- संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वाले दंपतियों को संतान सुख का आशीर्वाद मिलता है।
- व्रत करने वाली माताओं को सुपुत्र और विद्वान संतान की प्राप्ति होती है।
- संतान सप्तमी व्रत में ध्यान रखने योग्य बातें
1. सात्विकता और शुद्धता
- व्रत वाले दिन ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान करें और साफ-सुथरे वस्त्र पहनें।
- मानसिक और शारीरिक शुद्धता का पालन करें।
- लहसुन, प्याज, मांसाहार और शराब का पूर्ण परहेज करें।
2. पूजा की तैयारी
पूजा सामग्री में लाल वस्त्र, रोली, चावल, पुष्प, दीपक, धूप, फल, दूध, दही, मिठाई, कलश, सुपारी, पंचामृत और संतान सप्तमी व्रत कथा की पुस्तक शामिल करें।
घर की साफ-सफाई करके पूजा स्थान पर भगवान विष्णु, माता संतान लक्ष्मी और सप्तमी देवी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
3. पूजा विधि
- शास्त्रानुसार पूजन करें और संतान सप्तमी व्रत कथा का पाठ या श्रवण अवश्य करें।
- भगवान को भोग अर्पित करें और आरती करें।
- प्रसाद अपनी संतान को जरूर खिलाएं, ताकि व्रत का पुण्य उन्हें प्राप्त हो।
4. व्रत की विशेष सावधानियां
- व्रत केवल पूजा तक सीमित न रहे, बल्कि सच्चे मन से संतान के कल्याण के लिए प्रार्थना करें।
- इस दिन मन, वाणी और कर्म से पवित्र बने रहें।
- क्रोध, लोभ, ईर्ष्या और दूसरों की निंदा से बचें।
- घर में शांति बनाए रखें और किसी से विवाद न करें।
5. दान-पुण्य
व्रत के अंत में ब्राह्मणों, जरूरतमंदों और कन्याओं को भोजन, वस्त्र या दक्षिणा का दान करें।
संतान सप्तमी व्रत की मान्यता
पुराणों और लोकमान्यताओं के अनुसार, संतान सप्तमी व्रत करने से संतान की रक्षा होती है और उन्हें दीर्घायु, स्वास्थ्य और समृद्धि प्राप्त होती है। जिन दंपतियों को संतान की प्राप्ति नहीं हो रही, उनके लिए भी यह व्रत अत्यंत फलदायक माना गया है।