Santan Saptami 2025 Katha: संतान की लंबी आयु के लिए महिलाएं 29 अगस्त को रखेंगी संतान सप्तमी का व्रत
सप्तमी तिथि 29 अगस्त, रात आठ बजकर 21 मिनट से शुरू होगी और इसकी समाप्ति 30 अगस्त, रात 10 बजकर 46 मिनट पर होगी। पूजा का मुहूर्त- सुबह 11 बजकर पांच मिनट से दोपहर 12 बजकर 47 मिनट तक रहेगा।
Publish Date: Fri, 29 Aug 2025 09:19:29 PM (IST)
Updated Date: Fri, 29 Aug 2025 09:26:48 PM (IST)
संतान सप्तमी।HighLights
- महिलाएं अपनी संतान की उन्नति और सुख-समृद्धि की कामना करेंगीं।
- संतान सप्तमी माता-पिता के अपने बच्चों के प्रति प्रेम का प्रतीक है।
- श्रद्धा और विश्वास से किया गया यह व्रत संतान को दीर्घायु बनाता है।
नईदुनिया प्रतिनिधि, ग्वालियर। हिंदू धर्म में संतान सप्तमी व्रत को महत्वपूर्ण माना जाता है, इसे ललिता सप्तमी और मुक्ताभरण सप्तमी, संतान साती जैसे नामों से भी जाना जाता है। माताएं अपनी संतान के सुखी जीवन और लंबी आयु के लिए यह व्रत रखती हैं। संतान सप्तमी व्रत आस्था, भक्ति और प्रेम का प्रतीक है।
सही विधि से व्रत करने पर संतान सुख, खुशहाल जीवन और पारिवारिक समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है। संतान सप्तमी सिर्फ एक व्रत नहीं, बल्कि माता-पिता के अपने बच्चों के प्रति प्रेम और चिंता का प्रतीक है।
श्रद्धा और विश्वास से किया गया यह व्रत संतान को दीर्घायु, स्वास्थ्य और सुखमय जीवन प्रदान करता है। निसंतान दंपती जरूर करें सूर्यदेव का ये खास व्रत, इस व्रत के करने से संतान की प्राप्ति होती है।
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संतान सप्तमी व्रत शुभ मुहूर्त
ज्योतिषाचार्य सुनील चौपड़ा ने बताया कि सप्तमी तिथि 29 अगस्त, रात आठ बजकर 21 मिनट से शुरू होगी और इसकी समाप्ति 30 अगस्त, रात 10 बजकर 46 मिनट पर होगी।
पूजा का मुहूर्त- सुबह 11 बजकर पांच मिनट से दोपहर 12 बजकर 47 मिनट तक रहेगा।
संतान सप्तमी व्रत पूजा विधि
- संतान सप्तमी के दिन उपासक उठकर स्नान करते हैं।
- विशेष रूप से संतान सुख के लिए निर्धारित व्रत आरंभ करते हैं।
- गोपी वस्त्र और गोपाल मुख से भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति को सजाकर पूजा किया जाता है।
- व्रती व्यक्ति विशेष रूप से श्रीकृष्ण भगवान की कथाओं का समर्थन करते हैं। उन्हें बालक रूप में पूजते हैं।
- व्रती भगवान श्रीकृष्ण की आरती गाते हैं और उन्हें नैवेद्य अर्पित करते हैं।
- इस दिन व्रती व्यक्ति विभिन्न प्रकार के फल, मिठाई और अन्य आहार सामग्री को भगवान को अर्पित करते हैं और फिर इसे समर्पित करते हैं।