मल्टीमीडिया डेस्क। हिंदू धर्मशास्त्रों में पूर्णिमा तिथि को शुभ तिथि माना जाता है और इस दिन देवकर्म के साथ दूसरे शुभ कार्यों के भी करने का विधान है। इस दिन व्रत करने से पापों का अंत होकर पुण्य की प्राप्ति होती है। पूर्णिमा के दिन भगवान सत्यनारायण की पूजा का विधान है। भगवान सत्यनारायण की पूजा और कथा श्रवण से दिन दुर्भाग्य का अंत होता है और सुख-समृद्धि की वृद्धि होती है। भगवान सत्यनारायण श्रीहरी का स्वरूप है। स्कंद पुराण के रेवाखंड में इनकी कथा का उल्लेख किया गया है। यह कथा 170 श्लोकों में बताई गई है। कथा पांच अध्यायों में है और इसके दो प्रमुख विषय हैं। जिसमें एक संकल्प को भूलना है और दूसरा प्रसाद का अपमान करना है।
सत्यनारायण कथा
एक बार महर्षि नारद धरती पर भ्रमण करते हुए मृत्युलोक के प्राणियों को अपने-अपने कर्मों के अनुसार विभिन्न प्रकार के दुखों से परेशान होते देखा। इससे महर्षि नारद को बहुत तकलीफ हुई और वीणा के तार छेड़ते हुए अपने परम आराध्य भगवान श्रीहरि की शरण में क्षीरसागर पहुंच गये और विनम्र होकर बोले, ' हे नाथ! यदि आपकी कृपा मेरे ऊपर हैं तो मृत्युलोक के प्राणियों की व्यथा का हरण करने वाला कोई छोटा-सा उपाय बताने की कृपा करें।' तब भगवान ने कहा, 'हे वत्स! तुमने विश्वकल्याण की भावना से बहुत अच्छा प्रश्न किया है। अत: तुम्हें इसके लिए साधुवाद है.।आज मैं तुम्हें ऐसा व्रत बताता हूं जो स्वर्ग में भी दुर्लभ है और साथ ही महान पुण्यदायक है, मोह के बंधन को काट देने वाला है यह व्रत है श्रीसत्यनारायण व्रत। इसे विधि-विधान से करने पर मनुष्य सांसारिक सुखों को भोगकर परलोक में मोक्ष को प्राप्त करता है।'
श्रीहरी ने ब्राह्मण को बताया पूजा विधान
इसके बाद काशीपुर नगर के एक गरीब ब्राह्मण को भिक्षावृत्ति करते देख भगवान विष्णु स्वयं एक वृद्ध ब्राह्मण का रूप धरकर उस निर्धन ब्राह्मण के पास जाकर कहते हैं, ' हे विप्र! श्री सत्यनारायण भगवान मनोवांछित फल देने वाले हैं। तुम उनका व्रत-पूजन करो जिसको करने से मानव सब प्रकार के दुखों से मुक्त हो जाता है। इस व्रत में उपवास का भी अपना महत्व है लेकिन उपवास से मात्र भोजन न लेना ही नहीं समझना चाहिए।
उपवास के समय हृदय में यह धारणा होनी चाहिए कि आज श्री सत्यनारायण भगवान हमारे पास ही विराजित हैं। अत: अंदर व बाहर शुचिता बनाये रखनी जरूरी है और श्रद्धा-विश्वासपूर्वक भगवान का पूजन कर उनकी मंगलमयी कथा का श्रवण करना चाहिए।' संध्या के समय यह व्रत-पूजन अच्छा माना जाता है।
एक बार पौराणिक काल में शौनकादि ऋषि नैमिषारण्य स्थित महर्षि सूत के सामने सांसारिक सुख, कष्टमुक्ति और पारलौकिक सिद्धि का मार्ग जानने की जिज्ञासा लेकर पहुँचे। तब सूत जी ने सत्यनारायण व्रत कथा का उत्तम उपाय बताया। यह कथा भगवान विष्णु द्वारा महर्षि नारद को सुनाई गई थी। इस कथा के अनुसार शतानन्द, काष्ठ-विक्रेता भील एवं राजा उल्कामुख आदि को भगवान सत्यनारायण की इस पावन कथा से मोक्ष की प्राप्ति हुई।
गरीब ब्राह्मण शतानन्द, जो भिक्षा मांगकर अपना जीवन यापन करते थे। सत्यनारायण कथा के श्रवण और व्रत से से वो इस लोक के सुखों को भोगकर स्वर्ग लोक को प्रस्थान कर गए। इसी प्रकार लकड़ी बेचने वाल भील गांव-गांव में अपनी लकड़ियाँ बेचकर कमाए हुए धन से सत्यनारायण भगवान का पूजन अर्चन करता था। इसी के परिणामस्वरूप भगवान सत्यनारायण की कृपा से उसके घर में धन- धान्य और सुख-समृद्धि की वृद्धि हुई और उसके सभी दुखों का निवारण हुआ। राजा उल्कामुख ने भी बंधु-बांधवों सहित सत्यनारायण भगवान का विधि पूर्वक व्रत एवं पूजन किया। उन्हें भी सत्यनारायण भगवान की कृपा से निधन के बाद मोक्ष की प्राप्ति हुई।
इसी प्रकार इस कथा को जो भी श्रद्धा-भक्ति से श्रवण करेगा और समस्त बुराइयों को त्यागकर सत्यनारायण भगवान का व्रत संपन्न करेगा, उसके सभी दुःख दूर होंगे और वह सभी सांसारिक सुख भोगकर मोक्ष को प्राप्त करेगा।
सत्यनारायण व्रत की पूजा विधि
सत्यनारायण व्रत कथा एवं पूजन करने के लिए सुबह जल्दी उठकर स्नान कर पूजा वाले स्थान को स्वच्छ करें। इसके बाद इस स्थान पर पूजा की चौकी स्थापित कर उसके पास केले के वृक्ष को रखें या उसके पत्तों का मंडप बनाए। क्योंकि केले के वृक्ष में साक्षात् भगवान विष्णु का वास माना गया है। इसके बाद धुप-दीप, तुलसी, चन्दन, फूल, गंध, पंचामृत सहित पाँच कलशों को पूजा स्थल पर रखें।
अब चौकी पर सत्यनारायण भगवान की मूर्ति को स्थापित करें। गणेश जी सहित समस्त देवी-देवताओं का ध्यान करें। भगवान सत्यनारायण की शास्त्रोक्त पूजा करें और आरती उतारें। पूजन समाप्त होने के बाद पुरोहितजी को दान-दक्षिणा दें और भोजन कराएँ। इसके बाद स्वयं परिवार सहित सत्यनारायण कथा का प्रसाद ग्रहण करें और भोजन करें। इस तरह भगवान सत्यनारायण की जो भी पूजा भक्तिभाव से करेगा वह अखण्ड सौभाग्य और धन को प्राप्त करेगा।
भगवान सत्यनारायण कथा के लाभ
कार्य में आ रहे अवरोध कम हो जाते है।
सभी प्रकार के कष्टों का नाश होता है।
घर-परिवार में सुख शांति बनी रहती है।
मानसिक शांति के साथ धन-धान्य की वृद्धि होती है।
मन की इच्छाएं पूर्ण होती है।
संतान सुख मिलने के साथ परिवार का दायरा बढ़ता है।
शत्रुओं का नाश होकर विजय प्राप्त होती है।