Sawan Maas 2020: भगवान भोलनाथ की आराधना अनेकों स्वरूप में की जाती है। कभी उन्होंनें रौद्र रूप में अवतार लिया, तो कभी शिव का अवतरण सौम्य स्वरूप में धरती पर हुआ। महादेव का के सभी अवतार जनकल्याण और दुष्टों के संहार के लिए हुए थे। शिव महापुराण में भगवान शिव के अनेक अवतारों का उल्लेख मिलता है। शिव के अंशावतार भी बहुत है। शिव के कुछ प्रमुख अवतार ये हैं।
हनुमान
शिवमहापुराण के अनुसार देवताओं और दानवों को अमृत बांटते के लिए विष्णुजी ने मोहिनी रूप धारण किया और उनको देखकर शिवजी ने कामासक्त होकर अपना वीर्यपात कर दिया। सप्तऋषियों ने मिलकर उस वीर्य को कुछ पत्तों में संग्रहित किया। बाद में सप्तऋषियों ने महादेव के वीर्य को वानरराज केसरी की पत्नी अंजनी के कान के माध्यम से उनके गर्भ में स्थापित कर दिया, जिससे अत्यंत तेजस्वीऔर महाबली श्री हनुमानजी की जन्म हुआ।
भैरव
एक बार ब्रह्मा और विष्णु में श्रेष्ठता को लेकर विवाद हुआ। इसी दौरान वहां तेज-पुंज की आकृति प्रकट हुई। यह देखकर ब्रह्माजी ने कहा कि हे! चंद्रशेखर तुम मेरे पुत्र हो। इसलिए मेरी शरणागत हो जाओ। ब्रह्मा की बात सुनकर भगवान शिव क्रोधित हो गए। उन्होंने उस पुरुषाकृति से कहा- काल की भांति शोभायमान होने के कारण साक्षात कालराज हैं। भीषण होने के कारण भैरव हैं। भोलेनाथ से वरदानों के प्राप्त होने के बाद कालभैरव ने अपनी अंगुली के नाखून से ब्रह्मा के पांचवे सिर को काट दिया। इसलिए भैरव ब्रह्महत्या के पाप के दोषी हो गए। भैरव को काशी में ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति मिली। शिव महापुराण में भैरव को भगवान शंकर का पूर्ण रूप बतलाया गया है।
वीरभद्र
मान्यता है कि वीरभद्र भगवान शिव के वर हैं और यह अवतार उनकी जटा से उत्पन्न हुआ था। जब राजा दक्ष के यज्ञ में माता सती ने अपनी देह का त्याग कर दिया था तब क्रोधित होकर भगवान भोलेनाथ ने अपने सिर से एक जटा उखाड़ी और उसे पर्वत के उपर पटक दिया था। उस जटा के पूर्वभाग से वीरभद्र प्रगट हुए। शिव के इस अवतार ने उत्पन्न होते ही दक्ष के यज्ञ का विध्वंस कर दिया और दक्ष का सिर काटकर शिव के समक्ष रख दिया । बाद में भगवान शिव ने राजा दक्ष के सिर पर बकरे का सिर लगा कर उन्हें फिर से जिंदा कर दिया था।
अश्वत्थामा
शास्त्रों में अश्वत्थामा को काल, क्रोध, यम और भगवान शंकर का अंशावतार माना गया है। महाभारत में गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा को युद्ध के अंत में सेनापति बनाया गया था। गुरु द्रोणाचार्य ने भगवान भोलेनाथ को पुत्र रूप में पाने की लिए कठिन तप किया था। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर कैलाशपति ने उन्हें वरदान दिया था कि वे उनके पुत्र के रूप में अवतरण लेंगे।