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Publish Date: Mon, 02 Feb 2015 03:32:28 PM (IST)
Updated Date: Mon, 02 Feb 2015 08:14:17 PM (IST)
- पं. ओम वशिष्ठ
इस वर्ष माघ पूर्णिमा 3 फरवरी को है। इस दिन पुष्प नक्षत्र और रवि योग भी बन रहा है और इसलिए यह अत्यंत महत्वपूर्ण दिन बन जाता है। पद्म पुराण और भविष्यपुराण में वर्णन है कि इस दिन संगम में स्नान करने से सात जन्मों के पापों से मुक्ति मिलती है।
माघ के पूरे मास में ही नदियों और जलाशयों के जल में प्रात:काल स्नान से मन की शांति प्राप्त होती है और माघ पूर्णिमा इस पूरे शुभ मास के समापन की तिथि है। इस दिन नदियों के किनारे लोग सूर्य को अर्घ्य देते हैं और विधि विधान से भगवान विष्णु का पूजन करते हैं। माघ इस तरह से ध्यान, तप, व्रत और संयम का माह है।
इसी मास में लोग कल्पवास भी करते हैं। माघ मास में कल्पवास करके पूर्णिमा पर उसकी विधिवत समापन करने वाला जन्म और मृत्यु के फेर से मुक्त हो जाता है। हमारे शास्त्रों ने इस दिन स्नान और दान की अत्यधिक महत्ता बताई गई है। यह ऐसा दिन है जबकि देवता भी स्नान के लिए पृथ्वी पर आते हैं।
इस दिन पुष्कर, प्रयाग और अन्य तीर्थों में स्नान से कष्टों से मुक्ति मिलती है और आत्मा की शांति प्राप्त होती है। यह माना जाता है कि माघ पूर्णिमा पर भगवान विष्णु गंगाजल में निवास करते हैं इसलिए इस समय गंगाजल के स्पर्श मात्र से उद्धार होता है। इस दिन संगम के जल में स्नान का एक कारण यह भी है कि इस दिन चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से शोभायमान होते हैं।
पूर्ण चंद्रमा अमृत वर्षा करते हैं। मान्यता है कि माघ पूर्णिमा पर स्नान और दान करने से सूर्य और चंद्र दोषों से मुक्ति मिलती है। माघ के महीने में स्नान के पीछे वैज्ञानिक दृष्टि भी है, चूंकि इस समय ठंड समाप्ति की ओर रहती है और वसंत से ग्रीष्म का आगमन होने लगता है तो इस संधि पर सुबह जल्दी स्नान व्यक्ति को निरोगी बनाता है।
शास्त्रों में माघ स्नान का वर्णन है कि भरत ने कौशल्या से कहा था कि यदि राम के वनगमन में मेरी किंचित मात्र भी सम्मति हो तो मैं वैशाख, कार्तिक और माघ पूर्णिमा के स्नान से वंचित रहूं। मुझे अधोगति प्राप्त हो। यह सुनते ही कौशल्या ने भरत को अंक में भर लिया था। इससे पता चलता है भारतीय संस्कृति में जिन स्नानों को प्रमुखता दी गई है उनमें माघ पूर्णिमा का स्नान भी सम्मिलित है।
दान और व्रत की महत्ता
माघ पूर्णिमा पर यज्ञ, तप तथा दान का विशेष महत्व है। इस दिन भोजन, वस्त्र, कपास, घी, लड्डू, फल, अन्ना आदि का दान करना पुण्यदायक माना जाता है। जो व्यक्ति माघ पूर्णिमा पर दान करता हैं वह भगवान विष्णु की असीम कृपा का भागी बनता है। भगवान ने स्वयं कहा है कि इस दिन नदियों के जल से स्नान करके मेरा स्मरण करने वाला मेरा प्रियपात्र बनता है और वह मेरी कृपा पाता है। शैव मत को मानने वाले इस दिन भगवान शिव का पूजन करते हैं।
श्रीकृष्ण से पति की कामना
यह भी मान्यता है कि माघ पूर्णिमा पर बृजबालाओं ने बालू के श्रीकृष्ण बनाकर उनकी पूजा की थी और आज भी स्त्रियां कृष्ण सा वर पाने के लिए श्रीकृष्ण की पूजा करती हैं। माघ पूर्णिमा पर भगवान सत्यनारायण की भी पूजा की जाती है। यह माना जाता है कि सत्य ही ईश्वर है और इसलिए भगवान विष्णु के सत्य स्वरूप की पूजा होती है। यह दिन हमें अपने जीवन में सत्य के महत्व से भी परिचित करवाता है।
घरों में शांति के लिए गड़ेगा होली का डांडा
सतयुग से ही माघ पूर्णिमा पर होली का डांडा गड़ता आ रहा है। राजा रघु के समय से ही यह परंपरा है। इस संबंध में भविष्यपुराण में एक कथा है कि राजा रघु के समय एक ढोंढा नाम की राक्षसी थी। उससे राज्य की प्रजा परेशान थी। जब लोगों ने राजा से गुहार लगाई तो उन्होंने वशिष्ठ मुनि से बातचीत की। वशिष्ठ मुनि ने बताया कि यह माली दैत्य की पुत्री है और उसे शिवजी से वरदान मिला है कि वह देवता और दैत्य किसी के द्वारा न मारी जाए।
वह राक्षसी केवल विशेष प्रकार के उच्चारण से शांत रहती है। तब वशिष्ठ ने मार्ग सुझाया कि पूर्णिमा की रात्रि को एक लकडी गाड़ दी जाए और सभी जन मिलकर नाचें,गाएं और मंत्रों का उच्चारण करें। इस तरह उस राक्षसी के प्रकोप से राज्य की रक्षा हुई और तभी से होली का डांडा गाड़ने की परंपरा की शुरुआत हुई।