Surya Grahan 2019: धर्मशास्त्रों में सूर्य ग्रहण की काफी विस्तृत व्याख्या की गई है। सूर्य और चंद्र को देवता मानते हुए उनकी आराधना का विधान किया गया है और इसके अंतर्गत ग्रहण का गहन अध्ययन कर उसके कारण और प्रभाव को बताया गया है। हमारे ऋषि-मुनियों को ग्रहण का ज्ञान ईसा से चार हज़ार वर्ष पहले हो गया था। वेदांग ज्योतिष में सूर्य और चंद्र ग्रहण का विस्तार से वर्णन किया गया है।
अत्रिमुनि थे सूर्य ग्रहण का ज्ञान प्राप्त करने वाले पहले आचार्य
ऋग्वेद के अनुसार अत्रिमुनि और उनके परिवार को ग्रहण का बेहतर ज्ञान था। महर्षि अत्रि मुनि ग्रहण का ज्ञान को देने वाले पहले आचार्य माने जाते हैं। इसके बाद खगोल शास्त्र के रहस्य वेद-पुराणों में खुलते चले गए। जिसमें आसमान में टिमटिमाते तारों से लेकर अज्ञात ग्रहों का अध्ययन शामिल था। ऋग्वेद के एक मन्त्र में सूर्य ग्रहण का वर्णन करते हुए लिखा है कि हे सूर्यदेव असुर राहु ने हमला कर आपको अंधकार के आगोश में ले लिया है और मनुष्य आपको देख नहीं पा रहा है। उस समय महर्षि अत्रि ने अपने ज्ञान के दम पर छाया को हटाकर सूर्य का उद्धार किया। एक अन्य मंत्र में बताया गया है कि कैसे इन्द्र ने अत्रि मुनि की सहायता से ही राहु की सीमा से सूर्य की रक्षा की थी।
महर्षि अत्रि के पास इस तरह की काबिलियत कैसे आई इसको लेकर दो मत प्रचलित है। पहला मत यह है कि वह कठिन तपस्या कर सूर्य ग्रहण के प्रभाव पर असर डालने में समर्थ हुए, तो दूसरा मत यह है कि उन्होंने एक यंत्र बनाया था, जिसकी मदद से वह सूर्य ग्रहण को दिखालाने और उसके अध्ययन में सक्षम हुए थे।
महाभारत में है सूर्य ग्रहण का वर्णन
महाभारत में भी सूर्य ग्रहण का उल्लेख मिलता है। महाभारत महाकाव्य में मनु और देवगुरु वृहस्पति के बीच अध्यात्म तथा दर्शन के उपदेश की चर्चा का उल्लेख है । इस चर्चा में ग्रहण के संबंध में भी चर्चा की गई। इन दो श्लोंको में सूर्यग्रहण के बारे में विस्तार से चर्चा की गई है।
यथा चन्द्रार्कसंयुक्तं तमस्तदुपलभ्यते ।
तद्वच्छरीरसंयुक्तः शरीरीत्युपलभ्यते ।।२१।।
जिस तरह चंद्रमा और सूर्य के संयोग होने पर ही चंद्रमा से संबद्ध अंधकार के अस्तित्व का अहसास होता है, उसी तरह भौतिक शरीर से संयुक्त होने पर ही आत्मा है यह पता चलता है (
यथा चन्द्रार्कनिर्मुक्तः स राहुर्नोपलभ्यते ।
तद्वच्छरीरनिर्मुक्तः शरीरी नोपलभ्यते ।।२२।।
चंद्र-सूर्य के परस्पर अलग हो जाने पर जिस तरह वह अंधकार रूपी राहु अदृश्य हो जाता है, उसी तरह शरीर केछोड़ने पर आत्मा अदृश्य हो जाती है । यानी वह लुप्त हो जाती है।
महाभारत, शान्तिपर्व, अध्याय २०३