मल्यीमीडिया डेस्क। सनातन संस्कृति में पौराणिक काल से कालगणना का महत्व रहा है। विज्ञान की पेंचीदगियां और खगोलशास्त्र के रहस्यों को सुलझाने में भारतीय ऋषि, मुनियों, सन्यासियों और मनीषियों का महत्वपू्र्ण योगदान रहा है। दिन-रात से लेकर अंधेर-उजाले तक का ज्ञान हमारे विद्वानों को प्राचीनकाल से रहा है।
इसी तरह पंचाग हमारी काल गणना का प्रमुख हिस्सा है। वर्ष को मास में और मास को तिथियों में विभक्त किया गया है। तिथियों के अनुसार ही व्रत-त्योहार और पर्व मनाया जाता है। मास की प्रत्येक तिथि का महत्व होता है और उसी के अनुसार शुभ-अशुभ कार्यों को संपन्न किया जाता है। मुख्यत: तिथियों को पांच भागों में बांटा गया है। जिसे यह निर्धारित होता है कि किस तिथि को कौनसा कार्य किया जा सकता है। तिथियों के ये प्रकार नंदा, भद्रा, जया, रिक्ता और पूर्णा है।
नंदा तिथि
नंदा तिथियों की गणना शुभ तिथियों में की जाती है। प्रतिपदा, षष्ठी और एकादशी नंदा तिथि कहलाती हैं। कारोबार को प्रारंभ करने या व्यापार से संबंधित कार्य करने के लिए इन तिथियों को शुभ माना गया है। भवन निर्माण कार्य प्रारंभ करने के लिए भी तिथियां शुभ फल वाली मानी गई है।
भद्रा तिथि
भद्रा तिथियों को भी शुभ माना गया है। द्वितीया, सप्तमी और द्वादशी भद्रा तिथि कहलाती हैं। भद्रा तिथियों में अनाज, दुधारू जानवर, वाहन आदि की खरीदारी शुभ मानी जाती है। मान्यता है कि इन तिथियों में खरीदी गई वस्तु में बढ़ोतरी होती रहती है।
जया तिथि
जया तिथियों की गणना भी शुभ तिथियों में होती है। तृतीया, अष्टमी और त्रयोदशी जया तिथियां कहलाती हैं। जया तिथियों में शक्ति से संबंधित कार्य, मुकदमों से संबंधित मामले, शस्त्रों की खरीदारी, वाहन का क्रय शुभ फल वाला माना जाता है।
रिक्ता तिथि
पंचाग में चतुर्थी, नवमी और चतुर्दशी रिक्ता तिथियां कहलाती हैं। शास्त्रों के अनुसार रिक्ता तिथियों में गृहस्थ लोगों को शुभ कार्य नहीं करना चाहिए। ये तिथियां तंत्र-मंत्र सिद्धि के लिए शुभ मानी गई है।
पूर्णा तिथि
पूर्णा तिथियों को भी शुभ माना गया है। पंचमी, दशमी और पूर्णिमा पूर्णा तिथि कहलाती हैं। इन तिथियों में सगाई, विवाह समारोह, भोज आदि कार्यों को किया जा सकता है।
इन तिथियों के अलावा कुछ तिथियों शून्य तिथि माना गया है। मान्यता है कि इन तिथियों में विवाह कार्य संपन्न नहीं किए जाते हैं, लेकिन बाकी कार्य किए जा सकते हैं। ये तिथियां हैं चैत्र कृष्ण अष्टमी, वैशाख कृष्ण नवमी, ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्दशी, ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी, आषाढ़ कृष्ण षष्ठी, श्रावण कृष्ण द्वितीया और तृतीया, भाद्रपद कृष्ण प्रतिपदा एवं द्वितीया, आश्विन कृष्ण दशमी और एकादशी, कार्तिक कृष्ण पंचमी एवं शुक्ल चतुर्दशी, अगहन कृष्ण सप्तमी व अष्टमी, पौष कृष्ण चतुर्थी एवं पंचमी, माघ कृष्ण पंचमी और माघ शुक्ल तृतीया।