Trijata in Ramayan: रामायण भारतीय संस्कृति का एक आदर्श महाकाव्य है। त्रैतायुग की इस महागाथा में अनेक महानायक और खलनायक है। पावन नगरी अयोध्या में श्रीराम का साम्राज्य था और वहां पर रामराज्य में सभी सुखी और साधन संपन्न लोग निवास करते थे। वहीं लंका का नजारा अलग था। राक्षसराज रावण के राज में लोग तामसिक प्रवृति के थे और उद्दंड प्रवृत्ति के होने से अत्याचार उनकी आदत में था। ऐसे अराजक माहौल में भी लंका में विभीषण, त्रिजटा आदि जैसे सह्दय और परोपकारी मानव भी रहते थे।
सीता की पहरेदारी में तैनात थी त्रिजटा
लंकापति रावण के राज में एक अच्छे व्यवहार और विनम्रता के गुण से भरी हुई राक्षसी त्रिजटा थी। त्रिजटा राक्षसी थी, लेकिन उनका जीवन परोपकार के गुण से भरा हुआ था। देवी सीता को जब राक्षसराज रावण अपहरण कर लंका में लाया था उस वक्त उनको कैद कर अशोकवाटिका में रखा था। उस समय रावण ने अनेक राक्षसियों को माता सीता पर नजर रखने के लिए तैनात किया था। इन राक्षसियों में एक त्रिजटा थी। रावण ने सभी राक्षियों को यह आदेश दिया था कि किसी भी तरह वो सीता को उससे शादी के लिए मनाएं। राक्षसियां मनाने से लेकर डराने-धमकाने तक के सभी जतन कर रही थी कि किसी तरह माता सीता रावण से विवाह करने के लिए तैयार हो जाए।
त्रिजटा ने राक्षसियों को सुनाया सपना
उस समय त्रिजटा ने देवी सीता की सहायता की और वहां पर उपस्थित राक्षसियों को अपने एक सपने के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि मैने स्वप्न में देखा कि श्रीराम अपने भाई लक्ष्मण के साथ सीता को रावण के पुष्पक विमान में बिठाकर उत्तर की ओर ले जा रहे हैं। रावण नंगा गधे पर सवार होकर दक्षिण दिशा कि ओर जा रहा है। उसकी बीसों भुजाए कटी हुई है। विभीषण को लंका का राज मिल गया है और उसके दूसरे भाई जमीन पर पड़े हुए हैं लंका नगरी पानी में डूब रही है और एक वानर ने लंका में आग लगा दी है और राक्षसों की सेना का नाश कर दिया है। त्रिजटा सबी राक्षसियों से सीता से माफी मांगने के लिए कहती है। सीता उन सभी को वचन देती है कि वह लंका विजय के बाद उन सभी को बचाएगी।
सीता को दिलासा देती है त्रिजटा
रामायण के एक ओर प्रसंग में त्रिजटा देवी सीता की मदद करती है और उनको दिलासा दिलाती है। श्रीराम-रावण युद्ध के पहले दिन रावण पुत्र मेघनाद रणक्षेत्र में आया और उससे दोनों भाई श्रीराम और लक्ष्मण को नागपाश से बांध दिया, जिसकी वजह से दोनों बेहोश हो गए। लंकापति रावण रणक्षेत्र में देवी सीता को श्रीराम का हाल देखने के लिए भेजता है। श्रीराम की ऐसी हालत देखकर सीता रोने लगती है। उनको लगता है कि श्रीराम का देह अवसान हो गया। तभी त्रिजटा उनको समझाती है कि श्रीराम और लक्ष्मण अभी जिंदा है। इस तरह रावण की कैद में देवी सीता का सबसे बड़ा सहारा त्रिजटा थी।
काशी में त्रिजटा का मंदिर
यह भी मान्यता है कि लंका युद्ध के विजय के बाद त्रिजटा को सीता के साथ अयोध्या जाना था लेकिन सीता उनको वाराणसी जाने के लिए कहती हैं। जिससे की त्रिजटा को मोक्ष की प्राप्ति हो सके। उस समय देवी सीता ने त्रिजटा को यह वरदान भी दिया था कि वह काशी में हमेशा पूज्यनीय रहेगी। इसलिए आज भी काशी विश्वनाथ मंदिर के पास त्रिजटा का भी मंदिर है और भक्तआज भी फूल और हरी सब्जियां माता त्रिजटा को समर्पित करते हैं।
श्रीरामचरितमानस के सुन्दरकाण्ड में कहा गया है
भवन गयउ दसकंधर इहाँ पिसाचिन बृंद।
सीतहि त्रास देखावहिं धर हिं रूप बहु मंद ॥
त्रिजटा नाम राच्छसी एका। रामचरन रति निपुन बिबेका ।
सबन्हौं बोलि सुनाएसि सपना । सीतहि सेई कहु हित अपना॥
सपनें बानर लंका जारी। जातुधान सेना सब मारी॥
खर आरूढ़ नगन दससीसा । मुन्डित सिर खंण्डित भुजबीसा ॥
एहि विधि सो दच्छिन दिसि जाई । लंका मनहूं विभीषण पाई ।
नगर फिरी रधुबीर दोहाई । तव प्रभु सीता बोलि पठाई ॥
यह सपना मैं कहऊँ पुकारी। होहहि सत्य गएँ दिन चारी ॥
तासु बचन सुनिते सब डरी। जनक सुता के चरनन्हिं परीं ॥