'परशु' पराक्रम प्रतीक है। 'राम' सत्य सनातन का पर्याय हैं। इस प्रकार परशुराम का अर्थ हुआ पराक्रम के कारक और सत्य के धारक। परशुराम भगवान श्री हरि विष्णु के छठे अवतार माने जाते हैं। परशुराम जी के जन्मोत्सव को अक्षय तृतीया भी कहा जाता है, इस दिन 24 घंटे शुभ मुहूर्त रहता है। सनातन परंपरा में आठ ऐसे चिंरजीवी देवता हैं, जो युगों-युगों से इस पृथ्वी पर मौजूद हैं। इन्हीं में से एक भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम भी हैं। इस वर्ष 22 अप्रैल 2023 को अक्षय तृतीया के दिन ही भगवान परशुराम का जन्मोत्सव मनाया जाएगा। भगवान परशुराम से जुड़ी कई कथाएं हैं, लेकिन उनसे जुड़ी कुछ ऐसी बड़ी बातें भी हैं जो शायद अधिकांश लोग नहीं जानते हैं।
1. भगवान परशुराम के भगवान श्रीहरि विष्णु के आवेशावतार थे। उनका जन्म भगवान श्रीराम के जन्म से पहले हुआ था। मान्यता है कि भगवान परशुराम का जन्म वैशाख शुक्ल तृतीया के दिन-रात्रि के प्रथम प्रहर में हुआ था।
2.भगवान परशुराम जी के जन्म समय को सतयुग और त्रेता का संधिकाल माना जाता है। भगवान शिव के परम भक्त परशुराम जी को न्याय का देवता भी माना जाता है।
3.भगवान परशुराम जी की माता जी का नाम रेणुका और पिता का नाम जमदग्नि ऋषि था। वह अपने माता-पिता की चौथी संतान थे। परशुराम जी से बड़े तीन भाई थे।
4.भगवान शिव ने परशुराम जी को मृत्युलोक के कल्याणार्थ परशु अस्त्र प्रदान किया था। इसी वजह से वह परशुराम कहलाए।
5.भगवान परशुराम कभी अकारण क्रोध नहीं करते थे। जब सम्राट सहस्त्रार्जुन का अत्याचार व अनाचार अपनी चरम सीमा लांघ गया तब भगवान परशुराम ने उसे दंडित किया। भगवान परशुराम ने 21 बार घूम-घूम कर दुष्ट क्षत्रियों का विनाश किया। जो पाप के मार्ग पर चल रहे थे।
6.रामायण काल में सीता स्वयंवर में धनुष टूटने के पश्चात् परशुराम जी जब क्रोधित हुए और उनका लक्ष्मण से संवाद हुआ तो उसके बाद भगवान श्रीराम ने परशुराम जी को अपना सुदर्शन चक्र सौंपा था।
7. पिता की आज्ञा पर भगवान परशुराम ने अपनी मां का वध कर दिया था। जिसके कारण उन्हें मातृ हत्या का पाप लगा, जो भगवान शिव की तपस्या करने के बाद दूर हुआ।
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