
विनोद सिंह, नईदुनिया जगदलपुर: प्रतिष्ठित सीनियर विमेंस नेशनल फुटबाल चैंपियनशिप (राजमाता जीजाबाई ट्राफी) के 30 संस्करणों में मणिपुर ने सर्वाधिक 24 खिताब अपने नाम किए। इस खिताब को दिलाने में लिंडा काम की बड़ी भूमिका है। इस स्पर्धा में लीग से लेकर फायनल तक छह मैचों में किए गए 22 गोल में एक हैट्रिक के साथ 10 गोल उनके थे। हरियाणा के साथ एक मैच को छोड़ दें तो लिंडा कॉम ने हर मैच में गोल किए।
देश में खेल के क्षेत्र में पूर्वोत्तर के राज्यों में मणिपुर की धाक है। इसमें भी सबसे बड़ी भूमिका यहां की महिला खिलाड़ियों की है। बाक्सिंग क्वीन मैरी कॉम की तरह एक और उभरता हुआ नाम है फुटबाल खिलाड़ी लिंडा कॉम। सहयोगी खिलाड़ी तो यहां तक कहते हैं उनके पैरों में वह जादू हैं कि विपक्षी टीम के गोलकीपर घबराते हैं... कि जरा-सी नजर चूकी और लिंडा के पैरों से टकराकर फुटबाल सीधे उनके गोलपोस्ट के भीतर घुस जाएगी।
हाल ही में छत्तीसगढ़ में हुए फुटबाल मैच में उन्होंने यह कर दिखाया। एक सामान्य किसान परिवार से आई लिंडा काम को महिला फुटबाल में भविष्य के भारत का सबसे होनहार खिलाड़ियों में एक माना जा रहा है। लिंडा की उम्र अभी 20 वर्ष है और वह जितनी अच्छी खिलाड़ी हैं, उनकी सोच उससे एक कदम आगे है। उसका कहना है कि आज के समय में हर युवा को पढ़ाई के साथ किसी न किसी क्षेत्र में स्किल डेवलप करना चाहिए, ताकि आर्थिक रूप से अपने पैरों में खड़ा होने का सामर्थ्य दे सके। उन्होंने श्रीश्री गुरुगोविंद कन्या महाविद्यालय खुराई इम्फाल से बीए की पढ़ाई पूरी की है।
लिंडा बताती हैं कि 13 वर्ष की उम्र में ही उसका चयन भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) के लांगथवान सेंटर मेंं हो गया। यहां उसके खेल में निखार आया और 14 वर्ष की उम्र में राज्य की अंडर 15 की टीम में चुन ली गई। इसी वर्ष उसका चयन अंडर-15 की नेशनल टीम में हुआ और अंडर-17 मेंं विश्व कप के लिए भारतीय टीम में भी जगह मिल गई। इससे माता-पिता को गर्व हुआ और उन्होंने लिंडा को प्रोत्साहित करने में कोई कमी नहींं की। सेफ खेल अंडर-15 मेंं उन्हाेंने भारतीय टीम के लिए खेला। इसके बाद आज तक पीछे मुड़कर नही देखा। वर्ष 2022 में अंंडर-17 विश्वकप में वह भारत के लिए खेल चुकी हैंं। 2024 से लगातार भारत की सीनियर महिला फुटबाल टीम की सदस्य हैं।
मणिपुर के गांव खोईरेंताक खानऊ की रहने वाली लिंडा चार बहनों में सबसे छोटी है। एक भाई भी है। 28 फरवरी 2005 को जन्मी लिंडा के पिता अचूंग काम और माता चांदनी हर माता-पिता की तरह चाहते थे कि वह पूरा ध्यान पढ़ाई पर लगाए, लेकिन घर के समीप खेल के मैदान में बच्चों को फुटबाल खेलते देख लिंडा की रुचि भी फुटबाल में होने लगी। उन्होंने लड़कों के साथ फुटबाल खेलना शुरू किया और दो-तीन वर्ष में ही अच्छा खेलने लगी। पहले माता-पिता ने फुटबाल में उनकी रुचि पर चिंता जताई और पढ़ाई पर ही जोर दिया, लेकिन वह नहीं मानी। पढ़ाई में होनहार थी, इसलिए बाद में माता-पिता ने भी फुटबाल में आगे बढ़ने की स्वीकृति दे दी।
किसी भी फुटबालर की तरह लिंडा काम में भी मैच मेंं गोल करने की भूख रहती है। वह बताती हैं कि उसका एक लक्ष्य रहता है कि क्लब टीम के लिए, राज्य के लिए देश के लिए खेले तो सौ प्रतिशत परफारमेंंस दे। अधिक से अधिक गोल कर टीम को विजयी बनाने का संकल्प लेकर मैदान में उतरती है। लिंडा नारायणपुर से सीधे मेघालय की राजधानी शिलांग चली गई हैं। जहां भारतीय टीम के साथ अभ्यास में लगी हैं। 21 से 27 अक्टूबर तक भारत, ईरान और नेपाल के बीच होने वाली स्पर्धा में खेलेंगी।
मणिपुर की युवा पीढ़ी को लेकर वह क्या सोचती हैं इस पर लिंडा काम ने बहुत अच्छा जवाब दिया। उन्होंने कहा कि हम युवाओं को मणिपुर और अपने देश से प्यार है। यहां के लोग बहुत मेहनती हैं। युवा पीढ़ी को अपने भविष्य की चिंता है और भविष्य के सपनोंं को पूरा करने के लिए शिक्षा के साथ ही साथ ही कौशल विकास पर युवाओं को पूरा फोकस है। खेल का राज्य में अच्छा माहौल है और खेल भी युवाओं के लिए करियर का एक क्षेत्र है।