योन्सू (फिनलैंड) से वीरेंद्र तिवारी। जंगल से कैसे मंगल हो सकता है पूरी दुनिया के सामने सबसे खुशहाल देश फिनलैंड गजब का उदाहरण पेश कर रहा है। फिनलैंड में वनों से तकनीक का ऐसा संगम हुआ कि जरूरत की हर वस्तु वनों से ही मिलने लगी।
वाटरप्रूफ लकड़ी से लेकर पहने के लिए कपड़े, पेट्रोल-डीजल से लेकर हाथ टूटने पर चढ़ाया जाने वाला प्लास्टर, यहां तक की प्लास्टिक का विकल्प तक तैयार कर लिया गया है। हालही में मुझे यूरोपीय यूनियंस के वनों पर आधारित एक अध्ययन दल में शामिल होने का मौका मिला।
योन्सू शहर में मौजूद लकड़ी से बनी 14 मंजिला इमारत- Lighthouse Joensuu
कई दिनों तक मैंने फिनलैंड के नार्थ करेलिया,लैपलैंड और राजधानी हेल्सिंकी में वनों को लेकर हो रहे बेजोड़ कामों को करीब से जाना और समझा। ल्यूक और यूरोपीयन फोरेस्ट इंस्टीट्यूट बड़े-बड़े रिसर्च संस्थानों में वैज्ञानिक दिनरात इसी काम में जुटे हैं कि कैसे लकड़ी और वनों से निकलने वाली एक-एक कण का इस्तेमाल इस ढंग से किया जाए कि हर बदलते रूप में इसका सतत उपयोग हो सके। भारत में यदि इस दिशा में काम हो तो निश्चित तौर से बंजर जमीनों पर वन लगाकर हम भी बड़ी आबादी की जरूरतों को पूरा कर सकते हैं।
1. कपड़े
फिनलैंड की एक कंपनी मेट्सा ने पालिस्टर और काटन के विकल्प के रूप में कुर्रा टेक्सटाइल फाइबर बनाया है। इसके कपड़े बिल्कुल वैसे ही होते हैं जैसे हम अभी पहनते हैं। अगले साल तक कमर्शियल स्तर पर इसका उत्पादन होने लगेगा। यह साफ्टवुड पल्प से बनाया जाता है। कंपनी ने अपने द्वारा संरक्षित जंगलों में ही इस पेड़ को ऊंगा लिया है।
2. प्लास्टिक जैसा पैकिंग मटैरियल्स
फिनलैंड में परंपरागत पैकेजिंग की जगह जैव-आधारित पैकेजिंग तैयार कर ली है। प्लास्टिंक जैसा ही मटेरियल है जिसे पेप्टिक कहा जाता है इसे ईकामर्स और अन्य चीजों की पैकेजिंग में उपयोग किया जाने लगा है। इसके अलावा सिंगल यूज के लिए प्लास्टिक जैसी प्लेट्स,कटोरी,चम्मच भी वनों से मिली संपदा से ही तैयार हो रहा है। बड़ी बात यह है कि बड़े पैमान पर यह उपयोग में भी लिया जा रहा है।
3. जल-अग्नि रोधी लकड़ी
फिनलैंड ने लकड़ी को पानी न सोखने वाला (जलरोधक) बनाने में बड़ी सफलता हासिल की है। अग्निरोधी (फायरप्रूफ) लकड़ी पर शोध भी जारी है। इसके लिए लकड़ी के गत्ते पर एक विशेष दबाव और केमिकल का इस्तेमाल किया जाता है। बड़ी बात यह है कि इस विधि से लकड़ी की अधिकांश किस्मों को कंस्ट्रक्शन में उपयोग किया जा सकता है।
4.लकड़ी से निकलेगा ईंधन का विकल्प
कागज बनाने की प्रक्रिया में निकलने वाला एक उप-उत्पाद ‘लिग्निन’ अब जीवाश्म ईंधनों का टिकाऊ विकल्प बनकर उभर रहा है। यह वही प्राकृतिक तत्व है जो लकड़ी के रेशों को आपस में जोड़े रखता है। जब लकड़ी से पल्प (गूदा) तैयार किया जाता है, तो यह लिग्निन एक गाढ़े तरल रूप में अलग हो जाता है, जिसे ‘ब्लैक लिकर’ कहा जाता है। योन्सू सहित पूरे फिनलैंड में इस पर रिसर्च जारी है। अब वैज्ञानिकों और पर्यावरण विशेषज्ञों की नजर इसी ब्लैक लिकर पर है, क्योंकि इसमें जैव ऊर्जा उत्पादन की जबरदस्त क्षमता है। यानी वह ऊर्जा जो पारंपरिक कोयले या पेट्रोलियम की जगह इस्तेमाल हो सके।
जीवाश्म खत्म हो जाएंगे, जंगलों को उंगाया जा सकता है जलवायु परिवर्तन के कारण पूरी दुनिया में इस समय इस मुद्दे पर बहस छिड़ी है कि प्राकृतिक संसाधनों का दोहन किस ढंग से किया जाए कि वह न सिर्फ अनंत काल तक चलते रहें बल्कि प्राकृतिक संतुलन भी बना रहे। योन्सू में रिसर्च में जुटे लोग पूरी दमदारी से कहते हैं कि जमीन के अंदर से निकलने वाला तेल,कोयला एवं अन्य खनिज संपदा एक दिन समाप्त हो जाएगी, इसे मानव फिर से नहीं बना सकता। पेड़ और जंगल ही ऐसे हैं जिनको लगातार लगाने और व्यवस्थित ढंग से उनका दोहन करने से वह हमारे साथ लगातार बने रहेंगे।
लकड़ी पर चल रहे रिसर्च के बारे में जानकारी देते वैज्ञानिक सौरादीप्ता गांगुली।
गांगुली फिनलैंड के नैचुरल रिसर्च इंस्टीट्यूट (ल्यूक ) योन्सू में पदस्थ वरिष्ठ वैज्ञानिक सौरादीप्ता गांगुली कहते हैं कि लकड़ी को अति उन्नत तरीकों से संसाधित करने पर ही फिनलैंड का जोर है और योन्सू जैसे शहर इसमें लगातार योगदान दे रहे हैं।
गांगुली के अनुसार भारत जैसे विकासशील देशों को वन अनुसंधान में अधिक निवेश करना चाहिए और पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के साथ मिलकर औद्योगिक स्तर पर अनुसंधान एवं विकास परियोजनाएं शुरू की जानी चाहिए। जिससे सतत विकास लक्ष्यों को पूरा किया जा सके और भारत एक वन-आधारित जैव-आर्थिक व्यवस्था स्थापित कर सके।
तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने में यह कदम सहायक होंगे। गांगुली यूरोपीय देशों के जैसे भारत में भी संधारणीयता या सरल शब्दों में कहें तो टिकाऊ (सस्टेनिबिल्टि ) को हर कार्य औऱ विचार के मूल में रखने पर जोर देते हैं।