भगवत गीता की बातों को व्यवहार में शामिल करने से तनाव, क्रोध जैसी समस्याएं दूर हो जाती हैं। श्रीकृष्ण के उपदेश भी व्यक्तित्व को सुधारने के लिए कारगर है।
महाभारत में जब अर्जुन युद्ध भूमि कुरुक्षेत्र में दुविधा में फंस गए थे तो भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें गीता के उपदेश सुनाए थे।
गीता में कहा गया है कि क्रोध मनुष्य का दुश्मन होता है। जब किसी को क्रोध आता है तो वह अपना विवेक खो बैठता है। आइए जान लेते हैं कि इसपर काबू कैसे पाया जा सकता है।
भगवान श्रीकृष्ण का कहना है कि क्रोध पर काबू करना चाहिए। अगर ऐसा नहीं किया जाता है तो व्यक्ति आवेग में आकर गलत काम भी कर सकते हैं।
गीता के मुताबिक, खुद को क्रोध से दूर रखने के लिए व्यक्ति को प्रेम, ज्ञान और अध्यात्म की शरण ले लेनी चाहिए। अध्यात्म की शक्ति से क्रोध पर काबू पाया जा सकता है।
श्रीकृष्ण ने कहा है कि व्यक्ति को क्रोध त्यागकर अपने जीवन के लक्ष्यों पर ध्यान देना चाहिए। क्रोध की वजह से व्यक्ति की बुद्धि सही से फैसले नहीं ले पाती है।
गीता में यह भी कहा गया है कि क्रोध, मोह, लोभ ये सभी इंद्रियों के दोष होते हैं। अगर व्यक्ति इंद्रियों को अपने वश में कर लेता है तो उसका सफल होना निश्चित है।
अगर आपका मन शांत रहेगा तो स्वाभाविक है कि आपको गुस्सा नहीं आएगा। गीता के मुताबिक, अशांत मन हमारा शत्रु बन सकता है।