मिथिला की राजकुमारी माता सीता के स्वयंवर में पूरे विश्व के सर्वश्रेष्ठ राजाओं ने हिस्सा लिया था। आइए जानते है कि मां सीता के स्वयंवर में पहुंचने का रावण का क्या उद्देश्य था?
सीता माता के स्वयंवर को प्रभु श्रीराम ने जीता था। माता सीता का वर बनने के लिए राजा जनक ने शिव जी के धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने की प्रतियोगिता रखी थी। इस प्रतियोगिता को सिर्फ श्रीराम ही जीत सकते थे।
स्वयंवर जीतने के लिए भुजा का नहीं बल्कि चरित्र का बल चाहिए था। जो राजा जनक की सभा में सिर्फ प्रभु श्रीराम के पास था। प्रभु श्रीराम ने शिव जी की धनुष पिनाक में प्रत्यंचा लगाने का प्रयास किया था।
शिव जी का पिनाक धनुष श्रीराम द्वारा प्रत्यंचा लगाते समय ही टूट गया था। भगवान शिव भी खुद यही चाहते थे। क्योंकि मिथिला को अब उनका अगला रक्षक मिलने वाला था।
माता सीता के स्वयंवर की घोषणा के समय ही लंकापति रावण वहां पहुंचा था। रावण बिना आमंत्रण के मिथिला में शिव धनुष जीतकर माता सीता को हासिल करना चाहता था।
रावण ने भी शिव धनुष उठाने का प्रयास किया था। शिव जी का परम भक्त होने के बावजूद भी रावण शिव धनुष को उठा पाने में असफल रहा था।
रावण भले ही परम शिव भक्त था। परंतु उसके मन पवित्र नहीं था, मंदोदरी जैसी सुंदर और पतिव्रता नारी के होते हुए भी रावण सीता के स्वयंवर में गया था। पिनाक उठाने के लिए शारीरिक बल नहीं बल्कि चरित्र बल की जरूरत थी।
मिथिला की धरती पर रावण को हार का सामना करना पड़ा था। इस हार से रावण बेहद अपमानित हुआ था। जिसके चलते आगे चलकर उसने सीता हरण को अंजाम दिया था।