सुआ नृत्य छत्तीसगढ़ का एक प्रमुख नृत्य है, जो समूह में किया जाता है। इसे दीपावली के समय किया जाता है। इसके बाद यह नृत्य अगहन मास तक चलता है।
यह नृत्य छत्तीसगढ़ की लोक-संस्कृति का पर्याय है। कर्मा नृत्य नई फसल आने की खुशी में किया जाता है। इसमें 'करमसेनी देवी' का पूजन किया जाता है।
राउत नाचा यादव समुदाय का दीपावली पर किया जाने वाला पारंपरिक नृत्य है। इस नृत्य में राउत लोग विशेष वेशभूषा पहनकर टोली में गाते और नाचते हुए निकलते हैं।
गेड़ी नृत्य छत्तीसगढ़ की बस्तर की मुड़िया जनजाति का विशेष पारंपरिक नृत्य है। प्राय: गेड़ी नृत्य सावन माह में होता है। गेड़ी पूरी तरह से संतुलन का नृत्य है।
पंथी नृत्य छत्तीसगढ़ में बसे सतनामी समुदाय का प्रमुख नृत्य है। पुरुष प्रधान यह नृत्य बाबा गुरु घासीदास के जन्म उत्सव के रूप में शुरू हुआ था।
सैला छत्तीसगढ़ की गोंड जनजाति का आदिवासी नृत्य है, जो फसल की कटाई के बाद ईश्वर को शुक्रिया कहने के लिए किया जाता है।
ककसार नृत्य बस्तर की अबुझमाड़िया जनजाति द्वारा किया जाने वाला एक नृत्य है। इसे फसल और वर्षा के देवता ‘ककसाड़’ की पूजा के बाद किया जाता है।
सरहुल नृत्य उरांव जाति का नृत्य है। इसे चैत्र मास की पूर्णिमा को रात में किया जाता है। यह नृत्य एक प्रकार से प्रकृति की पूजा का आदिम स्वरूप है।
पंडवानी नृत्य भारत में प्रचलित लोक नृत्य शैलियों में से एक है। इसमें नर्तक पांडवों की कथा को वाद्ययंत्रों की धुन पर गाता है और अभिनय भी करता जाता है।