मां लक्ष्मी बहुत प्राचीन देवी हैं। मां लक्ष्मी उल्लेख सबसे पहले ऋग्वेद के श्री सूक्त में मिलता है।
स्वच्छता एवं सुव्यवस्था के स्वभाव को भी 'श्री' कहा गया है। यह सद्गुण जहां होंगे, वहां दरिद्रता, कुरुपता टिक नहीं सकेगी।
पदार्थ को मनुष्य के लिए उपयोगी बनाने और उसकी अभीष्ट मात्रा उपलब्ध करने की क्षमता को लक्ष्मी कहते हैं।
जैन धर्म में भी लक्ष्मी एक महत्वपूर्ण देवता हैं और जैन मंदिरों में पाए जाते हैं। लक्ष्मी भी बौद्धों के लिए प्रचुरता और भाग्य की देवी रही हैं।
महर्षि दुर्वासा के श्राप को फलीभूत करने के लिए जब माता लक्ष्मी ने इस संसार को छोड़ दिया था और समुद्र में निवास करने लगी थीं।
शरद पूर्णिमा के दिन समुद्र मंथन से माता श्री लक्ष्मी पुनः प्रकट हुई और माता लक्ष्मी ने शरद पूर्णिमा के दिन ही भगवान विष्णु से पुनः विवाह किया।