हिन्दू धर्म का छोटे-से-छोटा सिद्धांत, छोटी-से- छोटी बात भी अपनी जगह पूर्ण और कल्याणकारी है ।
छोटी-सी शिखा अर्थात् चोटी भी कल्याण का, विकास का साधन बनकर अपनी पूर्णता व आवश्यकता को दर्शाती है ।
शिखा बड़ी हो या छोटी परंतु उसकी अपनी महत्ता है। प्रत्येक आकार की शिखा की भी अनोखी महत्ता है।
शिखा नहीं रखने से हम जिस लाभ से वंचित रह जाते हैं, उसकी पूर्ति अन्य किसी साधन से नहीं हो सकती।
डॉ. हाय्वमन कहते हैं : चोटी का वर्णन वेदों में मिलता है । दक्षिण में आधे सिर पर ‘गोखुर’ के समान चोटी रखते हैं। अवश्य ही बौद्धिक विकास में चोटी बड़ी सहायता देती है।
प्रसिद्ध विद्वान डा. आइई क्लार्क एमडी ने कहा कि माला जपना, चोटी रखना हिन्दुओं का धर्म ही नहीं, सुषुम्ना के केन्द्रों की रक्षा के लिए विलक्षण चमत्कार है।
शिखा रखने तथा इसके नियमों का यथावत् पालन करने से सदबुद्धि, सद्विचारादि की प्राप्ति होती है । आत्मशक्ति प्रबल बनी रहती है ।
मनुष्य धार्मिक, सात्विक व संयमी बना रहता है। लौकिक-पारलौकिक कार्यों में सफलता मिलती है। सभी देवता मनुष्य की रक्षा करते हैं।
सुषुम्ना-रक्षा से मनुष्य स्वस्थ, बलिष्ठ , तेजस्वी और दीर्घायु होता है। नेत्रज्योति सुरक्षित रहती है।धार्मिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक सभी दृष्टियों से शिखा महत्वपूर्ण है।