संक्रांति के दिन सूर्यदेव शनि के घर मकर राशि में जाते हैं, ऐसे में काले तिल और गुड़ से बने लड्डू सूर्य और शनि के मधुर संबंध का प्रतीक माना जाता है। सूर्य और शनि दोनों ही मजबूत ग्रह माने जाते हैं।
तिल व गुड़ के लड्डू शनि व सूर्य दोनों को ही प्रिय है। ऐसे में जब काले तिल और गुड़ के लड्डुओं का दान दिया जाता है तो सूर्यदेव और शनिदेव दोनों ही प्रसन्न होते हैं।
पौराणिक कारण मानें तो इसका रहस्य तिल की उत्तपत्ति में छिपा है। तिल को गंगा की ही तरह पवित्र माना गया है। वो इसलिए, क्योंकि तिल भी गंगा नदी की तरह उनके शरीर से ही उत्पन्न हुआ है।
हिरण्य कश्यप अपने पुत्र प्रहलाद को लगातार कष्ट देकर परेशान कर रहा था तो यह देखकर भगवान विष्णु क्रोध से भर उठे। क्रोधित होने से गुस्से में उनका पसीना जब जमीन पर गिरा तब तिल की उत्पत्ति हुई।
माना जाता है कि जिस तरह गंगा जल का स्पर्श मृत आत्माओं को बैकुंठ के द्वार तक पहुंचा देता है ठीक इसी तरह तिल भी पूर्वजों, भटकती आत्माओं और अतृप्त जीवों को मोक्ष का मार्ग दिखाता है।
आयुर्वेद के छह रसों में से चार रस तिल में होते हैं, तिल में एक साथ कड़वा, नमकीन, मधुर एवं कसैला रस पाया जाता है। चारों रस चार कर्तव्य के प्रतीक हैं, जिन्हें धर्म अर्थ काम मोक्ष के नाम से जाना जाता है।