उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में एक घास पाई जाती है, जिसे छूते ही बिच्छू के काटने जैसा दर्द होता है। इसलिए इसे बिच्छू घास कहते हैं।
इसे स्थानीय भाषा में सिसौंण, बिच्छु बूटी या बिच्छु घास कहा जाता है और इसकी सब्जी को गढ़वाल में कंडाली और कुमाऊं में सिसूंण कहा जाता है।
इस घास की सब्जी सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होती है। इसके सेवन से मलेरिया, कैंसर और बीपी जैसी बीमारियों में राहत मिलती है।
इस जंगली घास में विटामिन A, C और K, मैग्नीशियम, फास्फोरस, पोटेशियम, सोडियम, एमिनो एसिड्स और एंटीऑक्सीडेंट पाए जाते हैं।
पानी में उबालने से इसका डंक खत्म हो जाता है और फिर इसका बना साग काफी स्वादिष्ट होता है। सेहत के लिए ये किसी रामबाण से कम नहीं।
इसकी सब्जी, कोशिकाओं को फ्री रेडिकल्स से होने वाले नुकसान से बचाने में मदद करती है। ये खून में भी एंटीऑक्सीडेंट का लेवल बढ़ाता है।
बिच्छू घास का इस्तेमाल हाई बीपी के इलाज के लिए भी किया जाता है। इसके सेवन से बीपी का लेवल कम होता है।
इसमें पेट की गर्मी को दूर करने की जबरदस्त क्षमता होती है। इसके सेवन से पेट की कई बीमारियां दूर होती हैं।
इसके सेवन से मलेरिया या किसी अन्य वजह से होनेवाला बुखार भी बहुत जल्दी ठीक होता है। इससे शरीर की इम्युनिटी बढ़ती है।