आजकल सभी को प्रेम होना आम बात हो गई है, लेकिन कहीं यह मोह तो नहीं। इस बात का किसी को पता नहीं चल पाता है। ऐसे में आइए जानते हैं कि गीता के उपदेश से कैसे जाने प्रेम और मोह के बारे में-
गीता के अनुसार, प्रेम एक ऐसी भावना है, जिसमें इंसान खुद से पहले उसे रखता है। प्रेम में किसी को बांधने की जरुरत नहीं होती, चाहे वह व्यक्ति आपसे कितना भी दूर क्यों न हों। दोनों एक दूसरे की प्रेम भावना को समझने में सक्षम होते हैं।
गीता के अनुसार, मोह में इंसान चीजों पर हक जमाता है। वह किसी व्यक्ति को छोड़ पाने की स्थिति में नहीं होता। मोह हर किसी के प्रति नहीं होता है, वह हर समय बदलता रहता है।
निस्वार्थ प्रेम बुद्धिमान लोग करते हैं, जो खुद से पहले समाज के बारे में सोचते हैं। उन लोगों को समाज से प्रेम होता है और दिन-रात उनके कल्याण में लगे रहते हैं। किसी प्रकार की परेशानी में उन्हें देख नहीं सकते।
गीता के अनुसार, प्रेम में किसी को पाना नहीं बल्कि उसमें खो जाना है। दूर रहकर भी उस इंसान को खुद के पास महसूस करना। उस व्यक्ति को याद करना, उसके लिए खुद को समर्पित करना।
गीता में कहा गया है कि प्रेम वह नहीं जिसे छीन कर या मांग कर लिया जाए, बल्कि प्रेम के लिए त्याग करना जरूरी होता है। प्रेम में दूसरों के लिए खुद को समर्पित करना जरूरी है।
अक्सर लोगों को प्रेम में ज्यादा लगाव हो जाता है, जिसके कारण खुद पर भी नियंत्रण नहीं होता है। यह स्थिति हानिकारक बन जाती है जिससे बाहर निकलने में इंसान को समय लगता है।
ऐसे लोग जो खुद की नकारात्मक भावनाओं को दूर करके, दूसरे लोगों की भावनाओं को समझते हैं। दूसरे लोगों की परेशानियों को अपना समझ कर मदद करते हैं।
इस गीता के उपदेश से प्रेम मोह तो नहीं, इस बात का पता चलता है। एस्ट्रो से जुड़ी ऐसी ही अन्य खबरों के लिए पढ़ते रहें NAIDUNIA.COM