भोलेनाथ की वेशभूषा सबसे निराली और आकर्षक है। आज हम आपको बताएंगे शिव जी के डमरू से जुड़े कुछ ऐसे रहस्यों के बारे में जिन्हें शायद आप भी नहीं जानते होंगे।
शिव जी के मस्तक पर अर्धचंद्र, माथे पर तीसरी आंख, हाथ में त्रिशूल, गले में सर्प, रुद्राक्ष, डमरू और मृत बाघ की छाल का वस्त्र पहने हुए शिव जी अपनी इस वेशभूषा में बेहद निराले लगते है।
डमरू को इस बात का प्रतीक माना जाता है कि कैसे अवगुणों पर विजय पाई जाए। डमरू के प्रयोग से अगर व्यक्ति अपने अवगुणों को दूर करने में थोड़ा भी सफल हुआ हो तो उसमें शिव जी की ऊर्जा का स्रोत उत्पन्न हो चुका हैं।
महादेव जी ने सृष्टि में संतुलन के लिए डमरु को धारण किया था। डमरू को ब्रह्मदेव का रुप भी माना जाता है। इसे बजाने से भक्तों को अनेकों लाभ मिलते हैं।
डमरु के साथ अगर भगवान शिव की स्तुति की जाए तो प्रभु की कृपा सदैव आप पर बनी रहती है। साथ ही कुछ भी अमंगल नही होता है।
डमरू से निकलने वाली ध्वनि से घर की नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और सकारात्मकता आती है। डमरू की प्रयोग से घर में नकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश भी नहीं हो पाता है।
डमरू के उपयोग से मन शांत होता और व्यक्ति का तनाव भी दूर होता है। शिव जी की विधिवत पूजा के बाद उनकी आरती करते समय डमरु को बिल्कुल मग्न होकर बजाना चाहिए।
भगवान शिव ने 14 बार डमरू बजाया और अपने नृत्य और तांडव से संगीत की उत्पत्ति की। डमरू की ध्वनि से व्यक्ति को अपने दुख और बीमारियों से लड़ने के लिए मजबूती मिलती हैं।