मां लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए मां-लक्ष्मी का व्रत करना चाहिए। मान्यता है कि इस व्रत से मां-लक्ष्मी अपने भक्तों की सभी शुभ मनोकामनाएं पूर्ण कर देती है। आइए जानते हैं किन नियमों से करनी चाहिए मां-लक्ष्मी की पूजा।
22 सितंबर से मां-लक्ष्मी का व्रत शुरु हो चुका है। इस व्रत को रखने से मां-लक्ष्मी अति प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों को सभी प्रकार की धन, सुख और सौभाग्य आदि का आशीर्वाद देती है।
माना जाता हैं कि इस व्रत को विवाहित जोड़ो का रखना बेहद शुभ होता है। इस व्रत को करने से मनोकामना पूर्ति के साथ-साथ दरिद्रता भी दूर होती है।
भादो की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से यह व्रत शुरु होते है और अश्विनी मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर खत्म होती है। ये व्रत 22 सितंबर से 6 अक्टूबर तक रखे जाएंगे।
16 दिन के व्रत के दौरान महालक्ष्मी के सभी आठ स्वरूपों विधि-विधान से पूजा करनी चाहिए। 22 सितंबर से 6 अक्टूबर तक नियमित रूप से श्री अष्टलक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।
व्रत के आखिरी दिन एक कलश में जल, कुछ सिक्के और अक्षत डालें। फिर कलश पर आम के पत्ते रखकर नारियल रखें और कलश का हल्दी और चंदन आदि से पूजन करें।
मां-लक्ष्मी की पूजा के बाद 16 दूर्वा की गांठ बांधकर इसे पानी में डुबोएं और घर के सदस्यों और कमरों में छिड़क दें। ऐसा करने से घर की दरिद्रता दूर होगी।
महालक्ष्मी व्रत के समय खट्टी चीजें, नशीले पदार्थ और मांसाहार का सेवन बिल्कुल भी न करें। व्रत के पारण के समय मां को खीर का प्रसाद ही चढ़ाएं।