नवरात्रि के 9 दिनों माता रानी की पूजा के बाद अंतिम दिन अष्टमी या नवमी के मौके पर हवन किया जाता है। आइए जानते हैं हवन करने की संपूर्ण विधि के बारे में।
अगर आप हवन की तैयारी कर रहें है तो जरूरी हैं कि आपको मंत्र और नियमों के बारे में पता हो। मंदिर और सार्वजनिक दुर्गा उत्सव के स्थानों पर अष्टमी और नवमी के पर्व पर हवन किया जाता है।
हवन के दौरान दुर्गा सप्तशती के 13 अध्यायों के मंत्रों को बोलते हुए स्वाहा के साथ हवनकुंड में आहुति दें। हवन के प्रभाव से नेगेटिव एनर्जी दूर होती है।
हवनकुंड में अग्नि जलाने के बाद इसमें शहद, फल, घी, लकड़ी की आहुति दी जाती है। मान्यताओं के अनुसार, हवन से स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि की प्राप्ति भी होती है।
हवन के लिए सबसे पहले सामग्री इकट्ठा कर लें। धूप, जौ, दही, सूखे मेवे, पान के पत्ते, सूखा नारियल, शहद, इत्र, घी और अक्षत एक जगह पर इकट्ठा कर लें।
तमाम सामग्री को मिलाकर हवन बना लें। हवन करने के लिए अग्नि जलाने के लिए कपूर और आम की लकड़ी का प्रयोग करें।
घी में भिगोई रुई और कपूर जलाकर हवनकुंड की लौ जलाएं। इसके पश्चात भगवान श्री गणेश, पंच देवता और नवग्रह को 5 बार घी अर्पित करना चाहिए।
हवनकुंड में ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे नमः का जाप करके आहुति दें। अंत में खीर और शहद मिलाकर मंत्र के साथ हवनकुंड में आहुति दें। इसके बाद आरती करें।