ये पर्व होली की तैयारियां, भजन, कीर्तन और फाग गीतों का प्रतीक है। फुलैरा दूज मथुरा, वृंदावन, उत्तर भारत के कृष्ण मंदिरों में खासतौर से मनाया जाता है।
इस दिन मंदिरों को रंग-बिरंगे फूलों से सजाया जाता है और राधा कृष्ण के प्रेम के प्रतीक के रूप में फूलों से होली खेलते हैं और एक दूसरे को फूलों के गुलदस्ते भेंट में देते हैं।
ये त्योहार वैवाहिक संबंधों को मधुर बनाने के लिए मनाया जाता है। इस दिन में साक्षात भगवान श्री कृष्ण का अंश होता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा को बहुत महत्व दिया जाता है।
फुलेरा दूज को रंगों का त्योहार भी माना जाता है। यह त्योहार राधा और कृष्ण जी के मिलन के दिन के रूप में मनाया जाता है। इस दिन मंदिरों में भजन कीर्तन और कृष्ण लीलाएं होती हैं।
फुलेरा दूज का दिन दोष मुक्त होता है। इसलिए इस दिन कोई भी शुभ और मांगलिक कार्य किया जा सकता है। इस दिन भगवान श्री कृष्ण की पूजा की जाती है और उन्हें गुलाल अर्पित किया जाता है।
फुलेरा दूज पर अधिकतर विवाह संपन्न होते हैं क्योंकि इस दिन विवाह के लिए कोई भी शुभ मुहूर्त देखने की आवश्यकता नहीं पड़ती। फुलेरा दूज के साथ ही होली के रंगों की शुरुआत भी हो जाती है।