पितृपक्ष की शुरुआत 29 सितंबर को हो चुकी है और 14 अक्टूबर को इसका समापन होगा। आइए जानते है कि क्या महिलाएं पिंडदान और श्राद्ध कर्म कर सकती हैं?
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से पितृपक्ष की शुरुआत हो चुकी है। पितृ पक्ष में सही तिथि पर पितरों के लिए तर्पण और श्राद्ध कर्म किया जाता है।
माना जाता हैं कि पितृपक्ष के दौरान पितरों को प्रसन्न करने के लिए श्राद्ध कर्म करते हैं तो प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं और फिर वापस चले जाते है।
गरुण पुराण के मुताबिक, श्राद्ध कर्म केवल पुरूष ही कर सकते है। महिलाएं पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध कर्म नहीं कर सकती है।
अगर घर में पुरुष नहीं हैं तो कुल का कोई अन्य पुरुष या किसी ब्राह्मण से आप श्राद्ध कर्म और तर्पण करा सकते है। घर की महिलाएं सिर्फ ब्राह्मणों को भोजन कराने का काम कर सकती हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, कुछ विशेष परिस्थितियों में कन्याएं श्राद्ध भी कर सकती है। सीता माता ने भी अपने पितरों का श्राद्ध किया था।
कथा के यह बताया गया हैं कि जब प्रभु श्री राम अपने पिता जी का श्राद्ध करने के लिए धाम पहुंचे थे, उस समय वह श्राद्ध की सामग्री लाना भूल गए थे। इस दौरान राजा दशरथ की आत्मा ने पिंडदान की मांग की।
इस परिस्थिति में सीता माता ने फल्गु नदी, गायस केतकी के फूल और वट वृक्ष को साक्षी मानकर श्राद्ध कर्म किया था। श्राद्ध कर्म करने के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए।