पंचांग के अनुसार, फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष 4 मार्च, शनिवार के दिन है। इस कारण इसे शनि त्रयोदशी कहा जाएगा।
इस दिन महादेव और शनिदेव की पूजा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। साथ ही कुछ उपायों से साढ़े साती और ढैय्या से मुक्ति मिलती है।
त्रयोदशी तिथि का आरंभ 4 मार्च को सुबह 11.43 मिनट पर होगा, जो अगले दिन दोपहर 02.07 मिनट पर समाप्त होगी।
शनि त्रदोयशी का व्रत रखने से व्यक्ति की किस्मत बदल जाती है। मानसिक और शारीरिक परेशानियों से मुक्ति मिलती है।
शनि त्रयोदशी के दिन छाया दान करना शुभ माना जाता है। इस उपाय से शनि साढ़े साती और ढैय्या का दुष्प्रभाव कम हो जाता है।
शनिदेव के अशुभ प्रभाव को कम करने के लिए काले कुत्ते को सरसों का तेल लगाकर रोटी खिलाएं।
शनि त्रयोदशी के दिन शिवलिंग में 108 बेलपत्र चढ़ाएं। ऐसा करने से शुभ फल की प्राप्ति होगी।
शनि की पीड़ा से मुक्ति पाने के लिए शनि त्रयोदशी के दिन पीपल के वृक्ष में दूध अर्पित करें। साथ ही 7 बार परिक्रमा करें।
शनिदेव के प्रकोप से बचने के लिए हनुमानजी की पूजा करें। प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ करें।
काले धागे में बिच्छू घास की जड़ को अभिमंत्रित करवा कर धारण करने से शनि कष्ट से राहत मिलती है।
लाल चंदन की माला पहनने से शनि के अशुभ प्रभाव को कम किया जा सकता है।
अगर आप पर शनि की साढ़ेसाती या ढैय्या चल रही है, तो मांस-मदिरा का सेवन न करें।
शाम के समय पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाएं और दूध अर्पित करें।
सवा किलो कोयला, एक लोहे की कील काले कपड़े में बांधकर अपने सिर पर से घुमाकर बहते जल में प्रवाहित कर दें।