होलिका हिरण्याक्ष एवं हिरण्यकश्यपु नामक दैत्यों की बहन और कश्यप ऋषि और दिति की कन्या थी।
जय-विजय थे सनक,सनंदन,सनातन और सनत्कुमार नाम के चार मुनियों के श्राप से हिरण्याक्ष एवं हिरण्यकश्यपु नामक दैत्य हुए।
कयाधु भक्त प्रहलाद की माँ ने अपने पति हिरण्यकश्यपु से होशियारी से विष्णु का नाम जपवा लिया और इसके प्रभाव से ही कयाधु,ने प्रहलाद जैसे विष्णुभक्त को जन्म दिया।
हिरण्यकश्यपु अपने पुत्र प्रहलाद को अपने शत्रु विष्णु भक्त जान कर मारने को बड़े-बड़े पर्वत शिखरों से गिराया,पानी में डुबाया,विषपान कराया यहां तक होलिका देवी जलाने आई खुद ही जलकर राख की ढेर हो गई।
दैवी शक्तियां जागृत रहती हैं। होलिका की पूजा करने का बाद होलिका दहन करना चाहिए और इसकी सात परिक्रमा करनी चाहिए।
ने नृसिंह अवतार अवतार लेकर भक्त प्रहलाद की रक्षा की हिरण्यकश्यपु को परमगति दी। भगवान ने कहा जिस कुल में तेरे—जैसा भक्त हो उसकी इक्कीस पीढ़ियां तर जाती है।
होलिका दहन के समय ताजी और कच्ची गेहूं की बाली अर्पित करना अत्यंत शुभ माना जाता है। इससे सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
सप्तधान्य से आती है सुख-समृद्धि,सात प्रकार के अनाज हो कहते है सप्तधान इसकी आहुति से प्रसन्न होते है पूर्वज पहली फसल से गेहूं बालियां ले आहुति करने से सुख समृद्धि वर्षभर बनी रहती है।
आहुति होली की अग्नि में गेहूं की सात बालियों की आहुति दी जाती है। सात को शुभ माना जाता है। सात वार,सात समुद्र,सात जन्म और विवाह में सात फेरे होते हैं। इस लिए गेहूं की सात बालियां डाली जाती हैं।