सीताजी की खोज के दौरान लंका से हनुमानजी ने रावण की कैद से शनि को छुड़ाया था और लंका से फेंका था। तब से शनिदेव मुरैना में हैं।
शनि देव जिस जगह गिरे थे वहाँ एक बड़ा-सा गड्ढा हो गया था। यह गड्ढा आज भी यहां पर मौजूद है। शनिवार एवं शनिश्चरी अमावस्या पर श्रद्धालुओं उमड़ती है।
शनि देव के मंदिर का निर्माण राजा विक्रमादित्य ने करवाया था। ग्वालियर के तात्कालीन सिंधिया रियासत के दौलतराव सिंधिया ने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया।
शनि जयंती व शनिश्चरी अमावश्या पर यहां पर विशाल मेला लगता है और देश विदेश से लाखों श्रद्धालु शनि की शरण में आते हैं।
बताया जाता है कि शनिश्चरा मंदिर पर्वत से ही महाराष्ट्र के सिगनापुर शनि मंदिर में प्रतिष्ठित शनि शिला ले जाई गई है। जब से यहाँ शनिदेव विराजित हुये हैं।
शनिश्चरा पहाड़ क्षेत्र में आपराधिक घटनाएं न के बराबर होती हैं। यदि कोई किसी वारदात को अंजाम देता है तो पकड़ा भी जाता है।