यह पूर्णिमा दान-धर्मादि के अनेक कार्य करने के लिए बड़ी ही पवित्र तिथि है।
गरीबों में अन्न, वस्त्र, टोपियाँ, जूते-चप्पल, छाते, छाछ या शर्बत, सत्संग के सत्साहित्य आदि का वितरण करना चाहिए।
स्नेहियों, मित्रों को सत्साहित्य, सत्संग की वीसीडी, डीवीडी, मेमोरी कार्ड आदि भेंट में दे सकते हैं।
तिलमिश्रित जल से स्नान कर घी, शर्करा और तिल से भरा हुआ पात्र भगवान विष्णु को अर्पित करें और अग्नि में आहुति दें।
तिल और शहद का दान करें, तिल के तेल के दीपक जलाएं, जल और तिल तर्पण करें ।
गंगा या घर के निकट किसी अन्य नदी में स्नान करें तो सब पापों से निवृत्त हो जाते हैं।
यदि उस दिन एक समय भोजन करके पूर्ण-व्रत करें तो सब प्रकार की सुख-सम्पदाएंं और श्रेय की प्राप्ति होती है।
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