भीष्म गंगा मैय्या के पुत्र थे। उनका पालन पोषण स्वयं मां-गंगा ने किया था। आइए जानते है महाभारत के सबसे बड़े योद्धा भीष्म के विवाह न करने के पीछे की वजह के बारे में।
हस्तिनापुर के राजा महराज शांतनु ने मां गंगा से भी विवाह किया था। मां गंगा से राजा शांतनु को भीष्म की प्राप्ति हुई थी।
मां गंगा ने जन्म से लेकर युवावस्था तक भीष्म को शिक्षा और प्रशिक्षण हेतु गुरु परशुराम से शिक्षा और युद्ध कौशल का प्रशिक्षण लिया था। जब भीष्म हस्तिनापुर की कमान संभालने योग्य हो गए तो मां गंगा ने उन्हें राजा शांतनु को शौप दिया था।
महाराज शांतनु की दो पत्नियां थी, पहली मां गंगा और दूसरी सत्यवती। ऐसे में सत्यवती भीष्म के आने पर दुखी हो गई। सत्यवती के अनुसार, अगर भीष्म हस्तिनापुर के सिंहासन पर बैठेंगे तो उनके बच्चे सिर्फ दास बनकर रह जाएंगे।
पिता की खुशी के लिए भीष्म ने अपने जन्मसिद्ध अधिकार को त्याग दिया और अजीवन ब्रह्मचार्य का व्रत ले लिया था। भीष्म ने यह प्रतिज्ञा ली कि वो अजीवन हस्तिनापुर के सिंहासन के रक्षक बनकर रहेंगे और कभी भी राजा नहीं बनेंगे।
भीष्म को कई अन्य नामों से भी जाना जाता है। देवव्रत, गौरांग, भीष्म, पितामह, गंगापुत्र, महामहिमा और कुरुश्रेष्ठ के नाम से भी भीष्म जाने जाते है।
जन्म से भीष्म का नाम देवव्रत था। अपने पिता के प्रति उनके समर्पण के चलते उन्हें भीष्म के नाम से जाना जाने लगा। भीष्म की प्रतिज्ञा के चलते ही महाराज शांतनु ने उन्हें इच्छामृत्यु का वरदान दिया था।
महाभारत काल में भीष्म एक सर्वश्रेष्ठ योद्धा थे। भीष्म को इच्छामृत्यु का वरदान प्राप्त था। ऐसे में हस्तिनापुर का रक्षण करते हुए भीष्म ने कई युद्ध जीते थे।