पूरे विश्व को अपने उजाले से रोशनी करने वाले और लोगों को ऊर्जा और जीवन देने वाले सूर्यदेव की आराधना का पर्व छठ की महानता काफी ज्यादा है।
हमारे ऋषियों ने इस पर्व की परंपरा के माध्यम से सूर्यदेव का नमन करने का एक अवसर पैदा किया है। यह कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है।
सूर्य देव को इस पर्व में व्रती लोग सुबह और सायं के समय नदी या तालाब में खड़े होकर अर्घ्य देती हैं। इससे उनका आशीर्वाद भी मिलता है।
ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान को अर्घ्य देते समय जल अर्पित करने से साधक के जीवन में सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
इसके पीछे एक पौराणिक कथा है कि राजा प्रियंवद का कोई संतान नहीं था जिसे लेकर वो काफी ज्यादा परेशान थे। इस समस्या को लेकर उन्होने महर्षि कश्यप से बात की।
इसके पीछे एक पौराणिक कथा है कि राजा प्रियंवद का कोई संतान नहीं था जिसे लेकर वो काफी ज्यादा परेशान थे। इस समस्या को लेकर उन्होने महर्षि कश्यप से बात की।
उस समय महर्षि कश्यप ने एक यज्ञ कराया था। इस यज्ञ में बनाई गई खीर को राजा प्रियंवद की पत्नी को खिलाई गई। उसके बाद उनके यहां एक पुत्र का जन्म हुआ, लेकिन वह मृत निकला।
इस दुख से राजा ने अपने प्राण त्याग दिए। उस समय ब्रह्मा की मानस पुत्री देवसेना ने राजा प्रियंवद से कहा कि , मैं सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हूं, इसलिए मेरा नाम षष्ठी है।
उन्होंने कहा कि यदि तुम मेरी पूजा करो और लोगों से इसका प्रचार करो। उसके बाद राजा ने षष्ठी के दिन विधि से पूजन किया। उसके बाद उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई।