न्यूयॉर्क। UN Report : संयुक्त राष्ट्र की तरफ से पाकिस्तान के लिए बुरी खबर है। यूएन के कमीशन ऑन द स्टेटस ऑफ वुमन (CSW) ने कहा है कि पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की धार्मिक आजादी खतरे में है। यहां खासतौर पर हिंदुओं और ईसाइयों को निशाना बनाया जा रहा है। तहरीक-ए-इंसाफ सरकार द्वारा भेदभावपूर्ण कानून ने धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हमले करने के लिए "चरमपंथी मानसिकता" वाले लोग मजबूत होकर उभरे हैं।
संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक और सामाजिक परिषद के एक आयोग, सीएसडब्ल्यू ने दिसंबर में जारी की गई 47 पन्नों की अपनी रिपोर्ट 'पाकिस्तान-रिलीजियस फ्रीडम अंडर अटैक' में ईशनिंदा कानून और अहमदिया विरोधी कानून के तहत बढ़ते 'शस्त्रीकरण और राजनीतिकरण' को लेकर चिंता जाहिर की है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि इन कानूनों का इस्तेमाल न केवल धार्मिक अल्पसंख्यकों को सताने के लिए, बल्कि राजनीतिक जमीन हासिल करने के लिए भी इस्तेमाल किया जा रहा है। आयोग ने कहा है कि पाकिस्तान में ईसाई और हिंदू समुदाय खासतौर पर निशाने पर हैं और इसमें भी महिलाओं व लड़कियों को निशाना बनाया जा रहा है।
हर साल सैकड़ों लड़कियों का अपहरण कर लिया जाता है और उन्हें मुस्लिम पुरुषों के साथ विवाह करने के लिए मजबूर किया जाता है। लड़कियों और उनके परिवारों के खिलाफ अपहरणकर्ताओं से गंभीर खतरों और धमकी के कारण उनके अपने परिवार में वापस जाने की कोई उम्मीद नहीं है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पुलिस की कार्रवाई में कमी, न्यायिक प्रक्रिया में कमजोरियों और धार्मिक अल्पसंख्यक पीड़ितों के प्रति पुलिस और न्यायपालिका दोनों की तरफ से होने वाले भेदभाव के कारण समस्या और जटिल हो जाती है।
आयोग ने कई प्रमुख उदाहरणों का हवाला देकर कहा है कि पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों को द्वितीय श्रेणी का नागरिक समझा जाता है। मई 2019 में सिंध के मीरपुरखास के एक हिंदू पशुचिकित्सक रमेश कुमार मल्ही पर कुरान से आयतें लिखे पन्नों में दवाइयां देने का आरोप लगाया गया। प्रदर्शनकारियों ने उनके क्लीनिक और हिंदू समुदाय के लोगों की अन्य दुकानों को जला दिया।
आयोग ने कहा कि पाकिस्तान में ईशनिंदा कानून का इस्तेमाल अक्सर धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ झूठे मामलों का दुरुपयोग करने के लिए किया जाता है। यह कानून विवाद और पीड़ा का स्रोत है, जिसके तहत इस्लाम का अपमान करने वाले को अपराधी ठहरा दिया जाता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि चरमपंथ के उदय के साथ पिछले तीन दशकों में ईश निंदा कानून का लंबे समय तक दुरुपयोग किया गया है, जिसका हानिकारक असर सामाजिक सद्भाव पर पड़ा है। ईंशनिंदा की संवेदनशील प्रकृति धार्मिक उन्माद को बढ़ाने का काम करती है और भीड़ की हिंसा का माहौल बनाती है, जिसमें लोग कानून को अपने हाथों में लेते हैं। इसके अक्सर घातक नतीजे सामने आते हैं।