-1762364355270.webp)
एजेंसी, नई दिल्ली। अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के विवादित ‘टैरिफ’ फैसले पर एक ऐतिहासिक सुनवाई हुई, जिसने राष्ट्रपति की शक्तियों की सीमाओं को लेकर बड़ा संवैधानिक प्रश्न खड़ा कर दिया है। ट्रंप प्रशासन का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील को अदालत के रूढ़िवादी और उदार विचारधारा वाले दोनों ही न्यायाधीशों के तीखे सवालों का सामना करना पड़ा।
यह मामला 1977 के अंतरराष्ट्रीय आपातकालीन आर्थिक शक्तियां अधिनियम (IEEPA) के तहत टैरिफ लगाने की वैधता से जुड़ा है। निचली अदालतों ने पहले ही माना था कि इस कानून का उपयोग केवल राष्ट्रीय आपात स्थिति के लिए होना चाहिए, न कि व्यापक व्यापारिक टैरिफ लगाने के लिए। तीन व्यावसायिक संगठनों और 12 डेमोक्रेटिक-नेतृत्व वाले राज्यों ने इस पर आपत्ति जताई है, यह कहते हुए कि ट्रंप ने अपनी संवैधानिक सीमाओं का उल्लंघन किया है।
सुनवाई के दौरान, मुख्य न्यायाधीश जॉन रॉबर्ट्स ने सवाल किया कि क्या ट्रंप ने “कांग्रेस को प्रदत्त कराधान अधिकारों में दखल” दिया है। उन्होंने कहा कि कर लगाना संविधान के तहत कांग्रेस की मूल शक्ति है, जबकि ट्रंप के टैरिफ राजस्व बढ़ाने वाले प्रतीत होते हैं। न्यायाधीश एमी कोनी बैरेट ने भी पूछा कि क्या IEEPA की “आयात नियंत्रण” संबंधी भाषा वास्तव में टैरिफ लगाने की अनुमति देती है।
ट्रंप प्रशासन का तर्क है कि टैरिफ राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति के लिए आवश्यक थे। अमेरिकी सालिसिटर जनरल डी. जान सायर ने अदालत में कहा कि “ट्रंप ने व्यापार घाटे को आर्थिक और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा माना, और टैरिफ के जरिए अमेरिका को बातचीत की मजबूत स्थिति में रखा।” यह फैसला न केवल ट्रंप की नीतियों बल्कि भविष्य के अमेरिकी राष्ट्रपतियों की शक्तियों की सीमा तय करने में भी निर्णायक साबित हो सकता है।