डिजिटल डेस्क। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की वार्षिक बैठक में कहा कि भारत की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से घरेलू मांग पर आधारित है, इसलिए अमेरिकी टैरिफ का असर देश की आर्थिक वृद्धि पर बहुत बड़ा नहीं पड़ेगा।
आरबीआई गवर्नर ने कहा, 'भारत ने वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच भी 8 प्रतिशत से अधिक की शानदार वृद्धि दर्ज की है। जबकि टैरिफ का कुछ नकारात्मक प्रभाव जरूर होता है, लेकिन यह हमारे लिए गंभीर चिंता का विषय नहीं है।'
उन्होंने अमेरिकी टैरिफ नीतियों से पैदा हुई वैश्विक व्यापारिक अस्थिरता और अन्य अर्थव्यवस्थाओं की धीमी वृद्धि का उल्लेख करते हुए कहा कि भारत की स्थिति इससे काफी अलग है।
मल्होत्रा ने कहा, 'हम ऐसे समय में रह रहे हैं जब नीतिगत अनिश्चितताओं और भू-राजनीतिक तनावों ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को चुनौती दी है। उभरते बाजार वाले देशों के लिए यह एक जोखिम है, लेकिन भारत ने इन परिस्थितियों में भी खुद को मजबूत बनाए रखा है।'
उन्होंने आगे कहा कि भारत ने कोविड महामारी और रूस-यूक्रेन युद्ध के प्रभावों से तेजी से उबरते हुए अपनी अर्थव्यवस्था को स्थिर किया। 'हमने मुद्रास्फीति को 8 प्रतिशत से घटाकर 1.5 प्रतिशत तक लाने में सफलता पाई है, जो पिछले आठ वर्षों में सबसे कम है। तेल की कीमतों में भी स्थिरता आई है,' उन्होंने कहा।
आरबीआई गवर्नर ने बताया कि भारत का राजकोषीय घाटा अब नियंत्रित स्तर पर है और केंद्र सरकार के लिए यह GDP का करीब 4.4 प्रतिशत है। साथ ही भारत का कुल कर्ज विश्व में सबसे कम में से एक है। उन्होंने कहा कि सरकार और मौद्रिक समिति के बीच बेहतर तालमेल से यह स्थिरता हासिल हुई है।
मल्होत्रा ने मुद्रा विनिमय के रुझान पर भी बात की। उन्होंने कहा, 'जहां डॉलर में करीब 10 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई, वहीं भारतीय रुपया इस साल ज्यादा नहीं गिरा है। इसका कारण संतुलित टैरिफ नीति और नियंत्रित पूंजी प्रवाह है। रुपये की स्थिरता भारत की प्राथमिकता है।'
उन्होंने यह भी जोड़ा कि भारत के पूंजी बाजार अब काफी गहराई और मजबूती प्राप्त कर चुके हैं, जिससे देश की आर्थिक स्थिति और स्थिर हुई है।