
बिजनेस डेस्क। रोजगार की तलाश में भारतीय युवा दुनिया के अलग–अलग देशों का रुख करते हैं। कोई अमेरिका की सिलिकॉन वैली जैसे टेक हब की ओर बढ़ता है, तो कोई यूरोप और एशिया के देशों में मेहनत-मजदूरी कर बेहतर कमाई का रास्ता खोजता है। मेहनत, अनुकूलन और परिवार के लिए कमाई भेजने की जिद यही पहचान भारतीय प्रवासियों को अलग बनाती है।
इसी कड़ी में 17 भारतीय मजदूरों की एक कहानी इन दिनों चर्चा में है, जिन्होंने सेंट पीटर्सबर्ग में काम कर हर महीने करीब ₹1.1 लाख कमाने का रास्ता चुना है।
ये 17 भारतीय प्रवासी बीते चार महीनों से रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में सड़क सफाई और मेंटेनेंस का काम कर रहे हैं। वे एक स्थानीय रोड मेंटेनेंस कंपनी के साथ जुड़े हुए हैं। इस समूह में 26 वर्षीय मुकेश मंडल भी शामिल हैं, जो भारत में पहले सॉफ्टवेयर डेवलपर के तौर पर काम कर चुके हैं।
सभी मजदूरों को हर महीने करीब 1 लाख रूबल का भुगतान किया जाता है, जो भारतीय मुद्रा में लगभग ₹1.1 लाख बैठता है। इस समूह में 19 से 43 वर्ष की उम्र के लोग हैं, जिनका बैकग्राउंड अलग–अलग है कोई किसान रहा है, कोई वेडिंग प्लानर, तो किसी ने दूसरे छोटे व्यवसाय किए हैं।
मुकेश मंडल के मुताबिक, उन्होंने भारत में Microsoft जैसी बड़ी कंपनियों के साथ काम किया है। AI, चैटबॉट, GPT जैसे आधुनिक टूल्स पर भी उनका अनुभव रहा है। इसके बावजूद उन्होंने बेहतर कमाई के लिए रूस में मैनुअल जॉब स्वीकार की।
उनका कहना है कि यह फैसला सिंपल इकोनॉमिक्स और कड़ी मेहनत पर आधारित है। वे करीब एक साल रूस में रहकर पैसे कमाना चाहते हैं और फिर भारत लौटने की योजना है।
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मुकेश का मानना है कि काम छोटा या बड़ा नहीं होता “कर्म ही भगवान है।” गौर करने वाली बात यह भी है कि रूस में जनसंख्या घटने और यूक्रेन संघर्ष के चलते मजदूरों की भारी कमी हो गई है। इसी वजह से अब रूस दुनिया के कई देशों से कामगारों को आकर्षित कर रहा है। यह कहानी सिर्फ कमाई की नहीं, बल्कि बदलते वैश्विक श्रम बाजार और मेहनत के प्रति भारतीयों के जज्बे की भी तस्वीर पेश करती है।