
असीम सेनगुप्ता
अंबिकापुर । अंग्रेजों ने छत्तीसगढ़ के चिरमिरी से झारखंड के बरवाडीह तक रेललाइन पर काम शुरू किया था। पुल-पुलियों के साथ रेल पांत बिछाने का काम पूरा नहीं हुआ और देश आजाद हो गया। आजाद भारत में यह रेल परियोजना अब तक अधूरी है। चिरमिरी से रेल लाइन अंबिकापुर तक बढ़ चुकी है।अंबिकापुर,उत्तर छत्तीसगढ़ का प्रमुख शहर है। रेल और यात्री सुविधाओं के मामले में पिछड़ा हुआ है।
अंबिकापुर से बरवाडीह तक लाइन बिछाने का काम आज भी अधूरा है। इसकी मांग कई वर्षों से की जा रही है। प्रस्तावित रेललाइन के अंतिम सर्वे के लिए साढ़े चार करोड़ रुपये की स्वीकृति दी गई है।इससे छत्तीसगढ़ के सीधे झारखंड के रास्ते रांची-कोलकाता से जुड़ने की उम्मीद बढ़ गई है।बरवाडीह से सभी रुट की ट्रेनें है। अंबिकापुर-बरवाडीह रेल लाइन लाइन के विस्तार से छत्तीसगढ़ व झारखंड का जनजातीय बहुल क्षेत्र सीधे मुंबई, हावड़ा से जुड़ जाएगा। दूसरे रेल मार्गों की अपेक्षा दोनों महानगर की दूरी लगभग चार सौ किलोमीटर कम हो जाएगी। उत्तर छत्तीसगढ़ को परिवहन के अलावा व्यापारिक दृष्टि से बड़ा लाभ मिलेगा। यात्री सुविधाओं के साथ-साथ व्यापारिक दृष्टि से प्रस्तावित रेल लाइन लाभप्रद होगा। रेल लाइन के लिए पूर्व में कई बार सर्वे हो चुका है। रेल लाइन के लिए 434 दिनों की क्रमिक भूख हड़ताल अंबिकापुर में हुई थी।
प्रस्तावित रेल स्टेशन
अंबिकापुर से बरवाडीह के बीच स्टेशन भी प्रस्तावित हो चुके है।अंग्रेजों के शासनकाल में बरवाडीह की ओर से रेल पांत बिछाने और पुल-पुलिया का काम भी शुरू किया गया था।प्रस्तावित रेल लाइन में अंबिकापुर से आगे परसा, बरियों, राजपुर रोड, कर्रा, पस्ता, झलरिया, दलधोवा, सरनाडीह(बलरामपुर) व झारखंड के बरगढ़, नौकी, बिंदा, पारो, हुतार व बरवाडीह है
कोयला परिवहन के लिए भी लाभप्रद
आजाद भारत से पहले अंग्रेजों ने जबलपुर, कटनी, अनूपपुर, चिरमिरी रेल लाइन को रांची बरकाकाना, बरवाडीह से जोड़ने की परियोजना तैयार की थी।छत्तीसगढ़ में साउथ ईस्टर्न कोल फील्ड लिमिटेड (एसईसीएल) और झारखंड में सेंट्रल कोल फील्ड लिमिटेड(सीसीएल) और भारत कोकिंग कोल लिमिटेड(बीसीसीएल) की खदानें हैं।दोनों राज्यों से कोयला परिवहन के लिए भी प्रस्तावित रेल लाइन लाभप्रद है। अंग्रेजों के भारत छोड़ देने के बाद परियोजना लटक गई थी। 1960-61 में तत्कालीन रेल मंत्री जगजीवन राम का अंबिकापुर आना हुआ था। क्षेत्रवासियों की मांग पर उन्होंने परियोजना को स्वीकृति दी थी लेकिन परियोजना अधूरी रह गई थी। 80 के दशक में इसकी मांग फिर उठी थी। कई बार रेल बजट में एक रुपये के टोकन मनी के साथ प्रस्तावित रेल लाइन को स्वीकृति दी जाती रही।
अंबिकापुर-बरवाडीह रेल लाइन एक नजर में
0 वर्ष 1935-36 में जबलपुर-रांची को जोड़ देने की योजना ब्रिटिश सेना ने द्वितीय विश्व युद्ध के कारणों से बनाई थी।
0 झारखंड के बरवाडीह से बरगढ़ होते हुए बलरामपुर के सरनाडीह तक प्राथमिक स्तर पर काम प्रारंभ कर दिया गया था।
01946 में एकाएक काम बंद कर दिया गया था।रेल पांत, अधूरे क्वार्ट्स,पुल-पुलिया आज भी नजर आती है।
0 1960 में तत्कालीन रेलमंत्री जगजीवन राम अंबिकापुर आए तो फिर मांग उठी।
0 वर्ष 2006 में बिश्रामपुर से रेल लाइन का विस्तार अंबिकापुर तक किया गया।
0 वर्ष 2013 में पहली बार अंबिकापुर-बरवाडीह 182 किलोमीटर रेल लाइन की सैद्धांतिक स्वीकृति एक रुपए के टोकन मनी के साथ दी गई।
0 वर्ष 2015 में मोदी सरकार में तत्कालीन रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने अंबिकापुर-बरवाडीह रेल लाइन स्वीकृति देते हुए टोकन मनी के रूप में केवल 5 करोड़ रुपए दिए।
0 फरवरी 2016 में तत्कालीन रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की उपस्थिति में रेल मंत्रालय व राज्य सरकार के अधिकारियों के मध्य समझौता ज्ञापन(एमओयू) पर हस्ताक्षर किया था।
0 नवंबर 2017 में परियोजना से लाभ और उपयोगिता का आकलन कराया गया था।
0 वर्ष 2023 में अंतिम सर्वे के रेल मंत्रालय ने साढ़े चार करोड़ रुपये प्रदान किए है।
नई दिल्ली तक सीधी ट्रेन सेवा अंबिकापुर से आरंभ हो चुकी है। सरगुजा क्षेत्र से प्रस्तावित सभी रेल परियोजनाओं को लेकर केंद्र सरकार गंभीर है,इन रेल परियोजनाओं को लेकर कार्य भी चल रहे हैं, इसमें अंबिकापुर-बरवाडीह की प्रस्तावित रेल लाइन भी शामिल है। पूरा प्रयास है कि इस रेल परियोजना का काम भी शीघ्र प्रारंभ हो।
रेणुका सिंह
लोकसभा सदस्य सरगुजा
व केंद्रीय राज्यमंत्री( जनजाति कार्य मंत्रालय भारत सरकार)