रवि भूतड़ा, नईदुनिया न्यूज़, बालोद: प्रदेश में यह जिला अपनी विविधताओं के लिए जाना जाता है। यहां पानी के बड़े-बड़े स्त्रोत हैं। भारी मात्रा में कच्चा लोहा पाया जाता है। यहां एक ओर प्राचीन मां बहादुर कलारिन की माची है तो दूसरी तरफ प्राचीन सत्ती चौरा। लेकिन एक कहानी अब तक अनसुलझी है।
ये जगह है, करकाभाट नामक गांव, जो झलमला-धमतरी 930 मुख्य मार्ग पर स्तिथ है। जहां सैंकड़ों एकड़ में ऐतेहासिक पत्थर बिखरे पड़े हैं। वक्त के साथ यहां फैले पत्थरों की चोरी भी हुई। लेकिन अब इस जगह को तारों से घेरा गया है।
बालोद जिले के करकाभाट स्थल को लेकर कई तरह की बातें पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है। कहते हैं यहां पर 10 किमी के क्षेत्र में 5 हजार से ज्यादा लाश दफन हैं। कभी कभी यहां सिसकियां सुनाई देती थी। शाम के बाद लोग इस स्थान से गुजरने से घबराते थे। समय के साथ सब बदलता गया और ये रास्ता राष्ट्रीय राजमार्ग बन गया।
बता दें कि यहां जिस तरह के कब्र समूह पाए जाते हैं वो बस्तर, नागालैंड, मणिपुर और अफगानिस्तान में मिलते हैं। यह अपने आप में अद्वितीय हैं, रास्ते से गुजरते किसी की नजर पड़ जाए तो वो रुककर देखते जरूर हैं। यह अपने आप में एक अतिथि स्मारक स्थल है। जो अब पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है।
इस जगह कई कब्र हैं और यहां पर ऐसे पत्थरों के आकार मिलते हैं, जो लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। यहां कहीं पर मछली के आकार के दो मुंह वाले पत्थर तो कहीं पर तीर के आकर के पत्थर खड़े हैं। पत्थरों की खूबी ये है कि यहां पर पत्थरों के ऊपर कलाकारी की गई है। कब्र के आसपास पिरामिड नुमा स्तूप भी बनाया गया है जो कि पत्थरों को संभाल कर रखता था। इसके लिए अब एक खास प्लान बनाकर सहेजने की आवश्यकता है।
यहां आने वाले पर्यटक व लोगों की माने तो यहां की भव्यता देखती ही बनती है। यहां की कलाकारी देखकर यहां आने वाले सोचते है कि यहां कभी बस्ती रही होगी या मंदिर रहा होगा या कोई भी युद्ध स्थल रहा होगा। चाहे जो भी हो इतिहास किसी को नहीं पता। लेकिन यहां के पत्थर और पिरामिड मंत्र मुग्ध करने वाला है।
ग्राम करकाभाट के आसपास अन्य गांवों में जब सर्वे के दौरान खुदाई हुई थी, तो पाषाण एवं धातु से निर्मित कई उपकरण, हथियार, सोने, चांदी और तांबा की मुद्राएं मिली थी। गुरुर ब्लॉक के ग्राम कुलिया, कनेरी में स्मारक के नीचे खुदाई में चुकिया मिट्टी की एक छोटी कलशी में रखे 30 साने के सिक्के मिले थे। जिसमें 25 सिक्के सामपुरीय नरेश महेन्द्रादित्य के, राजा भवदत्त के और एक सिक्का राज अर्थपति के शासन का था। ये सिक्के विरासत के रूप में आज भी गुरु घासीदास संग्रहालय में सुरक्षित रखे गए हैं। वहीं धनोरा में 500 पाषाणीय स्मारक मिले थे।
आखिर ये कब्र किसके हैं और इस जगह पहले क्या था। इसे जानने के लिए 90 के दशक में यहां पर दिल्ली से लेकर रायपुर के पुरातत्व के जानकारों ने खुदाई शुरू की थी। खुदाई में यहां पर भाला और तीर के सिरों पर लगने वाले नुकीले अंश और कृषि के औजार मिले थे। जिसे टीम अपने साथ ले गई। अब भी ये जगह लोगों के लिए कौतूहल का विषय है। जिसके बारे में लोग जानना चाहते हैं।
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क्षेत्रीय अन्वेषक अरमान अश्क बताते है कि महापाषाण स्थल आदिम सभ्यता से संबंधित है, लगभग साढ़े तीन हजार साल पुराना ये स्थल माना जाता है, 10 किलोमीटर के एरिया में 5 हजार कब्र दफन होने का दावा किया जाता है, वर्तमान में बहुत सारी कब्रों को तोड़ दिया गया है, कुछ स्थानों में सड़क बन गई, कुछ पर नहर, बांध बन गए। उससे काफी कुछ नुकसान हुआ है। यहां मानव सभ्यता के शुरुआत के अंश देखने को मिलते हैं।
साथ ही उन्होंने बताया कि भोलापठार, खोलडोंगरी, मुजगहन जाने वाले मार्ग, करियाटोला, भरदा-धोबनपुरी-धनोरा जाने वाले मार्ग में भी कब्र है। कुछ समय पहले यहां से पत्थर चोरी के भी मामले सामने आए थे। आसपास में क्रेशर मशीन से खुदाई कर पत्थर निकाले गए है। कई बार जिला प्रशासन को इसके संरक्षण और संवर्धन के लिए पत्र व्यवहार कर चर्चा की गई है। लेकिन आज तलक जिला प्रशासन के द्वारा इसके संरक्षण के लिए कोई भी ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं।
तत्त्कालिक कलेक्टर अमृत खलको के समय जिला पुरातत्व संघ के नाम से जिला कमेटी गठन हुआ था। लेकिन उनके जाने के बाद कोई भी मीटिंग नहीं हुई और न ही इस ओर किसी ने ध्यान दिया। जबकि जिला पुरातत्व संघ में संरक्षण के लिए विभाग से फंड आता है। ऐसे धरोहरों को सुरक्षित रखना चाहिए।