
थानखम्हरिया (नईदुनिया न्यूज)। सुंदरकांड की रचना करते समय गोस्वामी तुलसीदासजी जब दिन भर चौपाइयां, दोहे आदि लिपिबद्घ करते तो सुबह यह मिट जाते थे। इस कांड में हनुमान जी की यश कीर्ति की गाथाएं होती थीं और हनुमान नहीं चाहते थे कि मेरे स्वामी की यश पताका के ग्रंथ में मेरी बड़ाई की जाए। तब भगवान राम ने अपने परम भक्त हनुमान की गाथा को स्वयं सुंदरकांड में लिखा।
पाटेश्वरधाम के आनलाइन सतसंग में सुंदरकांड की रचना पर संतों द्वारा प्रमाणित क्षेपक कथा का वर्णन करते हुए बाबा रामबालकदास जी ने बताया कि तुलसीदास जी हनुमान जी की स्वामी भक्ति से प्रभावित हो इस कांड को हनुमान जी को समर्पित करना चाहते थे, लेकिन हनुमान नहीं चाहते थे कि उनके स्वामी के यश के सामने उनकी प्रसंशा की जाए। इस उहापोह में गोस्वामी ने अपने प्रभु से यह समस्या बतायी तो राम ने कहा कि यह हनुमान की महानता है कि वह अपने महान कार्यों को जगजाहिर नहीं होने देना चाहते। राम ने स्वयं सुंदरकांड की रचना की जिसे तुलसीदास ने भी सेवैया में प्रमाणित किया। राम जी द्वारा लिपिबद्घ रचना जब हनुमान द्वारा नहीं मेटी जा सकी तब उन्होंने गोस्वामी जी से पूछा कि आपने इसमें ऐसा कौन सा मंत्र डाल दिया जो मेटे नहीं मिट रहा है।
बाबा जी ने कहा कि रामचरित मानस के सातों खंडों में सुंदरकांड का सर्वाधिक महत्व है। यह समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला है। यह कांड श्री राम के शब्द विग्रह की सुंदर ग्रीवा है। मानस के सात कांडों को सात मोक्षपुरी की संज्ञा दी गयी है जिनमें से सुंदरकांड पांचवीं मोक्षपुरी कांची है। इसके दो भाग हैं शिवकांची तथा विष्णुकांची। इस कांड में सुंदर शब्द चौबीस चौपाइयों में आया है। हनुमान के बल, बुद्घि, विवेक, भक्ति का इस कांड में सुंदर वर्णन है। यह कांड आधिभौतिक, आध्यात्मिक एवं आधिदैविक सभी दृष्टियों से बड;ा ही मनोहारी कांड है। इसका पाठ अमोघ अनुष्ठान माना जाता है।