बिलासपुर। बदलते वक्त के साथ आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करते हुए दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे ने सिग्नल सिस्टम में भी बदलाव किया है। अब स्वचालित ब्लाक सिग्नलिंग प्रणाली यानी आटोमेटिक ब्लाक सिग्नलिंग सिस्टम का इस्तेमाल किया जा रहा है। आटोमेटिक ब्लाक सिग्नलिंग सिस्टम में दो स्टेशनों के निश्चित दूरी पर सिग्नल लगाए जाते हैं।
नई व्यवस्था में स्टेशन यार्ड के एडवांस स्टार्टर सिग्नल से आगे लगभग एक से डेढ़ किमी पर सिग्नल लगाए गए हैं। इसके फलस्वरूप सिग्नल के सहारे ट्रेनें एक-दूसरे के पीछे चलती रहती हैं। अगर किसी कारण से आगे वाले सिग्नल में तकनीकी खामी आती है तो पीछे चल रही ट्रेनों को भी सूचना मिल जाएगी । इसके बाद ट्रेन जहां है, वहीं ठहर जाएगी।
पहले जब आटोमेटिक सिग्नलिंग प्रणाली रेलवे में नहीं थी, तब एक सेक्शन में एक ही ट्रेन चलती थी। जब तक वह सेक्शन से बाहर नहीं निकल जाती, दूसरी ट्रेन रवाना नहीं की जाती थी। इसके कारण ट्रेनों के परिचालन में लेटलतीफी होती थी। इस प्रणाली से रेल लाइन पर ट्रेनों की गति के साथ ही क्षमता भी बढ़ गई है। वहीं, कहीं भी खड़ी ट्रेन को निकलने के लिए आगे चल रही ट्रेन के अगले स्टेशन तक पहुंचने का भी इंतजार नहीं करना पड़ता है।
स्टेशन यार्ड से ट्रेन के आगे बढ़ते ही ग्रीन सिग्नल मिल जाता है, यानी एक ब्लाक सेक्शन में एक के पीछे दूसरी ट्रेन आसानी से चलती है। इसके साथ ही ट्रेनों के लोकेशन की जानकारी भी मिलती रहती है। मालूम हो कि संरक्षित ट्रेन परिचालन में सिग्नलिंग सिस्टम की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। रेलवे में उपयोग में आने वाले उपकरणों का उन्नयन और प्रतिस्थापन एक सतत प्रक्रिया है, जिसे आवश्यकताओं के अनुरूप संसाधनों की उपलब्धता एवं परिचालन आवश्यकताओं के आधार पर किया जाता है।
दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे में बिलासपुर से दाधापारा, बिल्हा, गतौरा, जयरामनगर, उसलापुर, घुटकू, चांपा से कोरबा, नागपुर से भिलाई के बीच 362 किमी सेक्शन पहले ही आटोमेटिक सिग्नल प्रणाली से लैस हो गया है। एक दिन पहले जयरामनगर-लटिया-अकलतरा सेक्शन में आटोमेटिक सिग्नलिंग प्रणाली का कार्य किया जा चुका है। यह रेलखंड 13 किमी का है। इस लिहाज से अब जोन में 375 किमी आटोमेटिक सिग्नल प्रणाली से लैस हो गया है।
आटोमेटिक सिग्नल प्रणाली लागू हो जाने से बहुआयामी लाभ मिलेगा। इससे ट्रेनों की गति भी बढ़ेगी। यात्रियों को अभी अलग-अलग सेक्शनों में कार्य चलने से परेशानी जरूर हो रही है। लेकिन, भविष्य में जब ट्रेनें बिना थमे चलेंगी तो इसका लाभ यात्रियों को ही मिलेगा। वह समय पर गंतव्य पर पहुंचेंगे।
लागत की दृष्टि से भी यह काफी कम खर्चीला है। पहले कापर के केबल लगाए जाते थे। इसमें लागत ज्यादा आती थी। अब आप्टिकल फाइबर केबल लगाए जाते हैं। जिसके उपयोग में कम खर्च आता है। इसके अलावा इसकी चोरी का भी भय नहीं रहता। यह रिंग प्रोटेक्टेड केबल होते है जो जल्द खराब भी नहीं होते। इस प्रकार से दक्षिण पूर्व मध्य रेल्वे के सभी महत्वपूर्ण रेल खंडों मे इस प्रकार की आप्टिकल फाइबर केबल के साथ आटोमेटिक सिग्नल प्रणाली लागू करने की योजना है।