Railway News: ट्रेन परिचालन का नया अध्याय है आटोमेटिक सिग्नलिंग सिस्टम
अब आप्टिकल फाइबर केबल लगाए जा रहे हैं। इसकी लागत भी कम होती है। इसके चोरी होने का भी भय भी नहीं रहता है। यह रिंग प्रोटेक्टेड केबल होते है जो जल्द खराब भी नहीं होते।
By Manoj Kumar Tiwari
Edited By: Manoj Kumar Tiwari
Publish Date: Fri, 01 Sep 2023 02:51:24 PM (IST)
Updated Date: Fri, 01 Sep 2023 02:51:24 PM (IST)
आटोमेटिक सिग्नलिंग सिस्टम।HighLights
- ट्रेन सिग्नल के इशारे को फालो कर एक निश्चित दूरी पर पीछे खड़ी हो जाती है।
- जोन के इस सेक्शन में सिस्टमसेक्शन - दूरी
- आप्टिकल फाइबर केबल ने कम किया खर्च
Railway News Bilaspur: इस प्रणाली में एक सेक्शन में एक साथ कई ट्रेनों का परिचालन बदलते वक्त के साथ आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करते हुए दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे अपने सिग्नल सिस्टम में भी बदलाव किया है। इसी क्रम में अब स्वचालित ब्लाक सिग्नलिंग प्रणाली यानी आटोमेटिक ब्लाक सिग्नलिंग सिस्टम का उपयोग किया जा रहा है।
सिस्टम में दो स्टेशनों के निश्चित दूरी पर सिग्नल लगाए जाते हैं। नई व्यवस्था में स्टेशन यार्ड के एडवांस स्टार्टर सिग्नल से आगे लगभग एक से डेढ़ किमी पर सिग्नल लगाए गए हैं। इसके फलस्वरूप सिग्नल के सहारे ट्रेनें एक-दूसरे के पीछे चलती रहती है। अगर किसी कारण से आगे वाले सिग्नल में तकनीकी खामी आती है तो पीछे चल रही ट्रेनों को भी सूचना मिल जाएगी। इससे जो ट्रेन जहां है, वहीं रुक जाएंगी।
कई बार इन सेक्शनों के एक ही दिशा में एक से अधिक ट्रेनों के रुकने से यात्री भ्रमित हो जाते हैं। खासकर जब मेमू ट्रेन। इसके आगे और पीछे दोनों तरफ इंजन होता है। वैसे ही मालगाड़ी जिसके पीछे भी बैकिंग इंजन लगा होता है। इन ट्रेनों के रुकने से ऐसा प्रतीत होता है कि इंजन आमने-सामने आ गए हैं। जबकि पीछे वाली ट्रेन सिग्नल के इशारे को फालो कर एक निश्चित दूरी पर पीछे खड़ी हो जाती है।
सिग्नल सिस्टम के लागू हो जाने से एक ही रूट पर एक किमी के अंतर पर एक के पीछे एक ट्रेनें चलती हैं। इससे रेल लाइनों पर ट्रेनों की गति के साथ ही संख्या भी बढ़ गई है। वहीं, कहीं भी खड़ी ट्रेन को निकलने के लिए आगे चल रही ट्रेन के अगले स्टेशन तक पहुंचने का भी इंतजार नहीं करना पड़ता है।
स्टेशन यार्ड से ट्रेन के आगे बढ़ते ही ग्रीन सिग्नल मिल जाता है यानी एक ब्लाक सेक्शन में एक के पीछे दूसरी ट्रेन आसानी से चल सकती है। इसके साथ ही ट्रेनों के लोकेशन की जानकारी मिलती रहती है।
जोन के इस सेक्शन में सिस्टम सेक्शन - दूरी
- नागपुर से भिलाई - 279 किमी
- बिलासपुर – जयरामनगर - 14 किमी
- बिलासपुर – बिल्हा - 16 किमी
- बिलासपुर – घुटकू - 16 किमी
- चांपा - कोरबा - 37 किमी
आप्टिकल फाइबर केबल ने कम किया खर्च
आटोमेटिक सिग्नल प्रणाली लागू हो जाने से बहुआयामी लाभ रहा है। इससे एक ओर गाड़ियों की रफ़्तार तो बढ़ रही है, दूसरी ओर लागत की दृष्टि से भी यह काफी कम खर्चीला है। पहले कापर के केबल लगाए जाते थे , जिसमें लागत ज्यादा आती थी। अब आप्टिकल फाइबर केबल लगाए जा रहे हैं। इसकी लागत भी कम होती है। इसके चोरी होने का भी भय भी नहीं रहता है। यह रिंग प्रोटेक्टेड केबल होते है जो जल्द खराब भी नहीं होते।