
बिलासपुर, नईदुनिया प्रतिनिधि। छत्तीसगढ़ में लोक वाद्य यंत्र चिकारा कभी गांवों में होने वाले महारास की शान हुआ करता था। लोग भी इसके बिना महारास देखना पसंद नहीं करते थे। वहीं पर समय के साथ-साथ अन्य वाद्ययंत्रों ने चिकारा की जगह ले ली और यह धीरे-धीरे विलुप्ति की कगार में चला गया। ऐसे में विलुप्त चिकारा को पहचान दिलाने 62 वर्ष के संतराम साहू आज भी प्रयासरत हैं।
चिकारा वाद्ययंत्र छत्तीसगढ़ का लोक वाद्ययंत्र है। इसे बेलपान पोंगरिया के संतराम साहू बचपन से बजा रहे हैं। शुरुआत में वे गांवों होने वाले महारास और रामायण में चिकारा के साथ मंडली को संगत देते थे। इससे उनका लगाव देखते ही बनता है। आज के समय में भले ही युवा अन्य वाद्य यंत्रों के प्रति आकर्षित हो रहे हैं लेकिन वे आज भी इसे संगीत जगत में फिर से स्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं।
नौकरी छोड़ी
संतराम ने देश व राज्य में कई जगहों पर प्रस्तुति दी है। उनके बेटे ने बताया कि खैरागढ़ में कार्यक्रम के दौरान जब संगीत महाविद्यालय के गुणीजनों से उनका चिकारा सुना तो उनका चयन बच्चों को चिकारा सिखाने के लिए किया। पर उनका मन तो महारास में रमता था और वे बंधन में बंधना नहीं चाहते थे। ऐसे में उन्होंने खैरागढ़ की नौकरी छोड़ी और अपने गांव आकर खेती के काम के साथ ही अपनी संगीत यात्रा जारी रखी।
घूम-घूमकर देते हैं प्रस्तुति
वे घूम-घूमकर अपनी प्रस्तुति देते हैं। साथ ही युवा पीढ़ी को विलुप्त होते इस वाद्य यंत्र से परिचित करवाते हैं। चिकारा बजाने वाले कलाकार अब बहुत ही कम हैं। ऐसे में उनके साथी कलाकारों का मानना है कि चिकारा वाद्य यंत्र बजाने वाले वे एकमात्र कलाकार रह गए हैं।
मिले पुरस्कार
संतराम ने जाज्वल्यदेव महोत्सव, खैरागढ़, राजनांदगांव समेत कई प्रतिष्ठित मंचों में अपनी प्रस्तुति दी है। उन्हें छत्तीसगढ़ रत्न समेत कई पुरस्कार भी मिल चुके हैं।
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लिए जानी जाती हैं।