नईदुनिया प्रतिनिधि, बिलासपुर: छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने एक अहम पारिवारिक विवाद में बड़ा फैसला सुनाते हुए नाबालिग बच्चे की स्थायी कस्टडी उसके मामा के पास बनाए रखने का आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा कि बच्चे का "सर्वोत्तम हित" और उसका मानसिक व भावनात्मक कल्याण ही सबसे महत्वपूर्ण है। साथ ही, बच्चे के पिता को नियमित मिलने और छुट्टियों में साथ समय बिताने का अधिकार भी दिया गया है।
दुर्ग निवासी तरण सिंह की शादी रागिनी सिंह से हुई थी। शादी के बाद 14 फरवरी 2017 को बेटा पुरुषोत्तम सिंह पैदा हुआ, लेकिन 12 मार्च 2017 को पत्नी की मौत हो गई। इसके बाद से बच्चा अपने मामा, कबीरधाम निवासी ललित किशोर बैस के पास रह रहा है। ललित किशोर ने फैमिली कोर्ट में अर्जी देकर कहा कि जन्म से ही बच्चा उनके पास है, पिता ने कभी उसे वापस लेने की कोशिश नहीं की और दूसरी शादी कर ली। इसलिए उसकी देखभाल और पालन-पोषण का अधिकार उन्हें दिया जाए।
दूसरी ओर पिता तरण सिंह ने दावा किया कि वह बच्चे के प्राकृतिक अभिभावक हैं और उसके भविष्य के लिए बेहतर शिक्षा और देखभाल दे सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि उनके परिवार में ऐसे लोग हैं जो बच्चे की सही देखभाल कर सकते हैं।
कोर्ट ने नील रतन कुंडू बनाम अभिजीत कुंडू, मौसमी मोईत्रा गांगुली बनाम जयंत गांगुली और हालिया शाजिया अमन खान मामले के सिद्धांतों का हवाला देते हुए कहा कि, बच्चा न तो कोई संपत्ति है, न गेंद कि जिसे एक से दूसरे के पास उछाला जाए। बच्चे के कल्याण और भलाई को ही सर्वोपरि माना जाएगा, न कि सिर्फ माता-पिता के अधिकारों को।
हाई कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए मामा के पास ही बच्चे की कस्टडी रहने का आदेश दिया, लेकिन पिता को विजिटेशन और कान्टैक्ट राइट्स दिए। l वीडियो काल/फोन पर बातचीत -हर शनिवार या रविवार एक घंटे की बातचीत का अधिकार। l लंबी छुट्टियों में मुलाकात- 2 सप्ताह से ज्यादा की छुट्टियों में 5-10 दिन बच्चा पिता के साथ रह सकेगा। l त्योहारों पर साथ समय बिताना- पिता त्योहार के दिन बच्चे के पास या किसी उपयुक्त स्थान पर समय बिता सकेंगे। l कोर्ट ने कहा कि मामा को पिता और बच्चे की मुलाकात में कोई बाधा नहीं डालनी होगी।
फैमिली कोर्ट कबीरधाम ने सभी साक्ष्यों और गवाहियों के आधार पर ललित किशोर (मामा) को ही बच्चे का संरक्षक नियुक्त कर दिया। पिता ने इस आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी।
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हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच जस्टिस राजनी दुबे और जस्टिस अमितेंद्र किशोर प्रसाद ने मामले की विस्तृत सुनवाई की। कोर्ट ने पाया कि पिता ने पत्नी की मौत के एक साल के भीतर दूसरी शादी कर ली और दूसरी पत्नी से एक बेटी भी है। जन्म से ही बच्चा मामा के पास रह रहा है और पिता ने कभी सामाजिक या कानूनी प्रयास कर कस्टडी लेने की कोशिश नहीं की। मामा और बच्चा मानसिक रूप से जुड़ चुके हैं, ऐसे में अचानक उसे अलग करना उसके भावनात्मक स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर डाल सकता है।