
नईदुनिया प्रतिनिधि, बिलासपुर: जस्टिस संजय के अग्रवाल व जस्टिस संजय कुमार जायसवाल की डिवीजन बेंच ने भरण-पोषण को लेकर महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। डिवीजन बेंच ने कहा कि बेटी के भरण-पोषण के साथ ही विवाह का खर्च उठाना पिता की कानूनी और नैतिक जिम्मेदारी बनती है। पिता अपनी इस जिम्मेदारी से बच नहीं सकते। इस टिप्पणी के साथ डिवीजन बेंच ने पिता की याचिका को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने परिवार न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा है।
डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में साफ कहा है कि अविवाहित बेटी के भरण-पोषण और वैवाहिक खर्च उठाने की नैतिक और कानूनी जिम्मेदारी पिता की है। कोर्ट ने जोर देते हुए कहा कि यह नैतिक रूप से बाध्यकारी है कि पिता अपनी बेटी का वैवाहिक खर्च का वहन करे। भले ही बेटी बालिक क्यों न हो। 25 वर्षीय अविवाहित बेटी ने हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम 1956 की धारा 20 और 3(बी) के तहत परिवार न्यायालय में आवेदन पेश भरण-पोषण और विवाह का खर्च उठाने पिता को निर्देशित करने की मांग की थी।
बेटी ने बताया कि उसके पिता शासकीय शिक्षक है और 44,642 रूपये मासिक वेतन पाते हैं। बेटी ने मासिक भरण-पोषण और 15 लाख विवाह खर्च की मांग की। मामले की सुनवाई करते हुए सूरजपुर परिवार न्यायालय ने पिता को 2,500 रुपये प्रति माह भरण-पोषण देने और विवाह खर्च के लिए पांच लाख रुपये देने के निर्देश दिए थे। परिवार न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए पिता ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी।
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का उल्लेख करते हुए डिवीजन बेंच ने कहा कि अविवाहित, असहाय बेटी को पिता से भरण-पोषण पाने का अधिकार पूर्ण और लागू करने योग्य है, चाहे वह बालिग ही क्यों न हो। कोर्ट ने कहा, बेटी भले ही 25 वर्ष की है, लेकिन वह अपने पिता से विवाह खर्च और भरण-पोषण पाने की हकदार है।
डिवीजन बेंच ने पिता की अपील खारिज करते हुए फैमिली कोर्ट के आदेश को यथावत रखा है। बेंच ने निर्देश दिया कि पिता नियमित मासिक भरण-पोषण देता रहे तथा पांच लाख रुपये विवाह खर्च की राशि तीन महीने के भीतर जमा करे।
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